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________________ ग्यारवां दिन आया। रात्रि के 12 बजे हैं। सम्राट खुर्सी पर बैठा हुआ पुत्र की तरफ देख रहा है / अचानक नींद आ गई। नींद में स्वप्न आया, राज्य मिल गया, बहुत बड़ा महल है, सुन्दर पत्नि है ! बारह पुत्र हो गये। बहुत खुशी हो रही है। इसी बीच इकलौता पुत्र संसार से बिदा हो गया। पत्नी चिल्ला रही है, रो रही है, बाप सुनता ही नहीं है मैं किसको रोऊं किसको हंसू / इकलौते बेटे के लिए रोऊ या इन 12 पुत्रों के लिए हंसू। दोनों तरफ़ दृष्टिपात करता है। पागल की स्थिति बन गई ! यह स्थिति है संसार की। “थोडे दिन की जिन्दगानी ओ प्राणी, यहां सभी चीज है फानी। क्यों बन रहा तू अज्ञानी // हैं चार दिनों का यौवन, तेरे सपनों का संसार, आंख खुली सब झूठा भास, तन-धन-परिजन प्यार, कहते 'सज्जन'ओ ज्ञानी / / ओ॥" मानव जन्म को समझते हुए जिये ! आंख मूंद कर नहीं आंख खोल कर जिये। संतपुरुष , ऋषिमुनि, राजा महाराज, चक्रवर्ती सभी चले गये लेकिन उनकी चाम से जो कार्य हुये उनकी तरफ हमें अपना ध्येय ले जाना है। सबको एक दिन जाना है / सन्तों का सत्संग मिल गया तो जीवन सार्थक बन गया। प्रभजंना विद्याधर पुत्री है। जो एक हज़ार सखियों के साथ पतिवरण के लिए स्वयंवर मण्डुप में जा रही है। जब वह वन खण्ड से गुजर रही थी तो एक समूह उसे मिला जो शुभ शुद्ध एवं पवित्रता के प्रतीक वस्त्रो से आवेष्ठित था। वे पंचमहाव्रत धारी भगवान महावीर की साध्वियां थी। प्रभंजना जिसमें शिष्टता, सभ्यता, संस्कृति आदि सभी गुण प्रगट हो रहे थे, निकट पहुंच कर पंचांग नमस्कार किया। साथ में सभी कन्याओं ने भी वंदन किया। साध्वी जी ने सहज भाव में पूछा आज इतना प्रसन्न चेहरा इतनी खुशी किस बात की हो रही है। आंखे व आकृति सहज ही मुस्करा रही है। प्रभंजना बोली....साध्वी जी Jain Education Internationarivate & Personal Usevownly.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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