________________ "न सा जाई न सा जोणी, न तं ठाणं न तं कुलं। न जाया न मुआ जत्थ, सव्वे जीवा अणंतसो॥" ऐसी कोई जांति नहीं, ऐसा कोई योनि नहीं, ऐसा कोई स्थान नहीं, ऐसा कोई कुल नहीं जहां इस आत्मा ने जन्म-मरण न किया हो। अगर अतीत के अनन्त भवों के सम्बंधो का चिन्तन करें तो किसे कहें अपना? यह निश्चित रूप से चिन्तन का विषय होगा। चार गतियों में भ्रमण होता रहा है। यह बात जिस दिन किसी आत्मा के समझ में आ जायेगी उसी दिन से उसका शरीर, सम्बन्ध, साधनों के प्रति आकर्षण कम हो जायेगा। कितनी ही बार लाड़ी, गाड़ी, बाड़ी बसायी किन्तु यह राही कहीं भी स्थायी नहीं रहा / पर की उपलब्धि में अपनी उपलब्धि मानता है। यह बाह्य आत्मा का लक्षण है। इसी स्थिति को मिथ्यात्व कहते हैं। इस अज्ञान का अन्त होगा जब सत्य को समझने व समझाने वाले संतो का समागम मिलता है। आज दिन तक किसके पीछे दौड़ लगा रहे हो कर्म निर्माण के पीछे / बेटी की शादी में ज्यादा से ज्यादा दायज़ा दूं जिससे दुनिया मुझे कहे की बेटी की शादी तो आपने बहुत ही अच्छे शानदार ढंग से की बहुत ही दायज़ा दिया। नामवारी के पीछे मरे मिटे जा रहे हैं। किसका सम्बन्ध अपना है ? जिन बंगलो का, फ्लेटों का फेक्ट्रियों का निर्माण कराया उसका उपयोग हम नहीं करते हैं करते भी है तो थोड़े समय। बाद में ऐसे ही ऐसे छोड जाते है साथ में एक भी बंगला, या फेक्ट्री नहीं जाती। अंत में स्थिति क्या बनती है। “माल खाये कोई, और मार खाये कोई !" यह मूर्खता हम अनादि काल से करते आ रहे है। समझदार व्यक्ति ऐसी मूर्खता नहीं करेगा। किसे कहूँ मैं अपना ? जो चले गये या वर्तमान में हैं, वह अपने हैं ? एक सम्राट् उसके इकलौता पुत्र है / बीमार हुए काफी समय हुआ ठीक ही नहीं हो रहा है / सीरियस हालत है। रात-दिन पति-पत्नि की आंखों में नींद नहीं क्या उपाय किया जाये / इसी स्थिति में दस दिन व्यतीत हो गये। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org