________________ देखते तो मेरा कुछ नहीं है। मेरा मिथ्या अभिमान था। मोही मन था, यह देव धन्य है। यह पुण्यात्मा मैं पापात्मा ! इधर की पक्ति उधर मैं आ गया। रागी मन विरागी बन गया / तुम्बी का स्वभाव उर्ध्वगामी है। चिन्तन की गहराइयों में पहुंचते पहुंचते दशार्णभद्र की आत्मा ऊर्ध्वगामी बन गई। शासन प्रभावना का निमित्त प्रभु भक्ति की भावना / अपने आपको खोजने लग गया। मेरा स्वरूप कुछ और है अभिमान का नहीं। धन्य है प्रभु ! आज मुझे बचा लिया। पर्दा फटने की तैयारी हो गई ! रागी मन पूर्ण रूप से विरागी बन गया। *** Jain Education Internation Private & Personal Usevamly.jainelibrary.org