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________________ देता है। इधर हाथी के हौदे पर दशार्णभद्र पूरे लवाजमें के साथ गाजे बाजे से प्रभु की भक्ति के लिए जा रहा है। गाड़े के नीचे लगे खच्चर यहीं सोचते हैं। संसार मेरे ही ऊपर है। आज आबू के मन्दिरों के दर्शन करों मन प्रसन्न हो जाता है, कितने सुन्दर कलाकृति तो अद्वितीय है। भगवान की प्रतिमाओं को भी देखो मन प्रसन्न हो जाता हैं ! तृष्णा डाकिन है इससे छूटना बहुत मुश्किल है। जाना नहीं निज आत्मा ज्ञानी हुए तो क्या हुए। पंचमहाव्रत आदरे, घोर तपस्या भी करें मन की कषाय न मरी, साधु हुए तो क्या हुए। -जाना नहीं.... इधर से दशार्णभद्र प्रभु भक्ति के लिए जा रहा है ! उधर सूर्याभिदेव प्रभु भक्ति के लिए आकाश से उतर रहा है। भक्ति में अनन्त शक्ति है। भक्ति मार्ग से तीर्थंकर गोत्र का बन्ध होता है / आकाश से देव उतर रहा है उसका ऐश्वर्य देखते ही आंखे चकाचौंध होती थी। एक वावड़ी उसके अन्दर विविध प्रकार के कमल खिल रहे हैं। ऐरावत हाथी जिसके ऊपर स्वर्णजड़ित सिंहासन पर अंलकार, आभूषणों से सुसज्जित सूर्याभदेव विराजित है। वावड़ी में जितने कमल है उनकी एक-एक पाखड़ी पर आठ-आठ नाटक अलग-अलग प्रकार के हो रहे हैं। ऐसा अद्भुत दृश्य संगति की ध्वनियों से आकाश गुंजायमान है। ऐसी कान्ति देखी नहीं सुनी नहीं ऐसे सूर्याभदेव आकाश से उतर रहा है। दशार्णभद्र प्रभु के पास पहुंचता है उसी समय सूर्याभदेव पहुंच गया। दशार्णभद्र सोचने लगा यह मैं क्या देख रहा हूँ। क्या नृत्य हो रहा है दृश्य बदलते जा रहे हैं। देवताओं के नाटकों को देखते देखते भान भूल गया यह कौन भाग्यशाली, पुण्यशाली है जो भगवान की भक्ति करने जा रहा है और मैं भी जा रहा हूँ। मेरी क्या विचारधारा मेरी भक्ति जैसी किसी की न हो। इसके सामने मेरी भक्ति कुछ नहीं। चिन्तन चल पड़ा। धिक्कार पड़ो मेरी आत्मा को आज दिन तक मैं भी कुछ हूँ यहीं समझ बैठा था। मेरे पन ने मुझे भुला दिया / यह अद्भुत शक्ति Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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