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________________ 59 जीव करता है। व्यक्ति दर्शन कर लेते हैं। पर पूजा करने में शर्म आती हैं। अरे भाई ! भगवान के चरणों की पूजा करते हो तो पावर हाऊस से लाईट मिलती है। स्वीच ऑन हो जाता है। दशार्णभद्र को भगवान की भक्ति करने की भावना है। विविध प्रकार की तैयारियों में उसका मन लगा हुआ है। भक्ति के साथ अहंभाव है मेरे जैसी भक्ति आज दिन तक किसी ने नहीं की है। कुछ ज्ञान पा लिया, अभिमान आ गया कुछ नहीं सागर में बूंद के समान पाया। उसका इतना अभिमान ! जगडूशाह और पेथड़शाह को देखों इतिहास में नाम अमर हो गया उनके सामने हम तो कुछ नहीं / दशार्णभद्र ने पूरे नगर को सजाया है भगवान के समोशरण तक। हाथी, घोड़ा, रथ, सैनिक आदि सम्पूर्ण परिवार के साथ राजा सुसज्जित हो रहा है। इन्द्र भी प्रसन्नता कर रहे हैं। सूर्याभदेव ने देखा भरत क्षेत्र में दशार्णभद्र राजा कैसे प्रभु की भक्ति में जाने की तैयारी कर रहा है। मन को तो देखू ? मन को देखा ! अभिमान भरा है। भक्ति में यह क्या ? अहं आगे नहीं बढ़ायेगा। बाहुबलि के जीवन में केवल ज्ञान कितना दूर था, अहं के कारण रूक गया। कितनी तपस्या की फिर भी केवल ज्ञान नहीं। स्वीच ऑन करने की देरी केवलज्ञान प्रगट हो जाये, देव दुन्दुभि बज उठे। पांव उठाने की देरी अहमता ममता दोंनो नीचे पड़े नमता आ गई पैर उठाने की शक्ति मिली बहिनों की आवाज से तुरन्त केवल ज्ञान, जाना नहीं पड़ा। सरलता से सिद्धि प्राप्त होती ऊपर से सूर्याभदेव ने देखा / जाऊं और अभिमान को गिराऊं। देवताओं के वैक्रिय लब्धि होती हैं। शरीर पांच होते है / औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेज़स, कार्मण ! औदारिक शरीर अपना होता हैं। वैक्रिय शरीर नरक और देवताओं के होता हैं ! वैक्रिय शरीर टूटता नहीं है गिरता नहीं, पड़ता नहीं है / पारे के समान बिखर जाता है / और फिर वापिस मिल भी जाता है। सूर्याभदेव पूरी तैयारी के साथ आकाश से बादलों में से निकलता हुआ दिखाई Jain Education Internation@rivate & Personal usevaroby.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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