________________ 58 नम्रता आ गई जीवन में तो अहमता और ममता की तलवार नीचे गिर जायेगी। भगवान की तो भक्ति कोई करें या ना करें उनकी दृष्टि तो सब पर समान ही रहती है ! इन्द्र भी भगवान की शरण में आया और गौशाला भी प्रभु की शरण में आया। दोनों के अलग-अलग भाव ! गौशाला ने भगवान को उपसर्ग दियें। इन्द्र ने भगवान के पास आकर कहा। भगवान आपके ऊपर बहुत उपसर्ग आने वाले है, आपकी आज्ञा हो तो मैं आपकी सेवा में रहूँ। भगवान ने कहां! इन्द्र ! न ऐसा हुआ है न होता है और न भविष्य में ऐसा होगा। भगवान को कितने कष्ट आये लेकिन किसी का प्रतिकार नहीं। हमारे ऊपर अगर कोई छोटा सा संकट आ गया तो हम उसका चारों तरफ से प्रतिकार करते हैं / यह प्रतिकार कराने वाला अंह और मम ही है। एक बहन मंदिर गई हुई थी। उसके घर एक औरत छाछ लेने के लिए आई। बहू अकेली थी उसने कहां आज छाछ नहीं है, वह औरत वापस चली गई। रास्ते में सासू मिली उसने पूछा बहन कहां से आ रही है। उसने कहां मैं छाछ लेने तुम्हारे घर गई थी परन्तु बहू ने कहां छाछ नहीं है, इसलिए वापिस जा रही हूँ। सासू बोली बहू मना करने वाली कौन होती है घर की मालकिन तो मैं हूँ आ गया अभिमान / उस औरत को वापिस घर ले गई / घर पहुंच कर अन्दर गई, और बाहर आ कर बोली छाछ नहीं है। यह सुन बहन असमंजस में पड़ गई। यह है अभिमान कि बहू कहने वाली कौन होती है। घर में सबसे बड़ी तो मैं हूँ। अभिमान है वहां क्रोध है। मैं कुछ हूँ। बस समाप्त / प्रत्येक प्राणी के अन्दर भगवान के दर्शन करो! “ना जाने किस भेष में बाबा मिल जाये भगवान" मरुदेवी माता का जीव कहां से आया। एक केले के पत्ते में से। वहां सहन शक्ति रखीं। हम न जाने कहां-कहां घूम कर आये हैं। निगोद में भी गये होगें। एक तीर्थंकर का जीव जब मुक्ति में जाता है तव एक आत्मा अव्यवहार राशि से व्यवहार राशि में आती है। एक श्वास में साढ़े सत्रह भव एक निगोद का Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org