________________ कहां-फलाने की बहू-फलाने की बेटी, फलाने की बहन आदि अनेको रिश्ते बताये। लेकिन सही क्या है इसका पता नहीं यह सब तो व्यवहारिक रिश्ता है। जब तक शरीर है तब तक माता-पिता, भाई-बहन यह संयोग है। एक बार भगवान राम ने हनुमान से पूछा तुम कौन हो ? हनुमान ने सोचा भगवान सब कुछ जानते हैं मैं कौन हूँ फिर भी पूछ रहे हैं तो जरूर कोई रहस्य होगा। हनुमान ने सोच कर जवाब दिया। प्रभु मैं शरीर से हनुमान हूँ और आत्मा से राम हूँ। भगवान बहुत खुश हुए! वास्तव में आत्मा-आत्मा में कोई भेद नहीं, भेद सिर्फ कर्मो का होता हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि भगवान की आत्मा कर्म विजयी बन गई और हमारी आत्मा कर्मो से आबद्ध है / चाम से काम कर लो तो शरीर सार्थक बन जायेगा। सामयिक पारने के सूत्र में आता हैं। “भयवं दसंणभद्दो" साहित्य में नाम उसका ही आता है जिसने चाम से कुछ किया है। दशार्णभद्र राजा था। एक दिन बगीचे के माली ने आकर समाचार दिया कि राजवाटिका में भगवान महावीर स्वामी पधारे हैं। राजा को बहुत खुशी हुई। मंत्रियों को बुलाया और आदेश दिया कि भगवान के दर्शनार्थ ऐसे पहुंचना कि आज दिन तक कोई नहीं गया हो। भगवान महावीर का समोशरण है वहां तक पूरे नगर को सजाना है। हाथी-घोड़ा वैण्ड बाजे आदि पूरे लवाजमें के साथ प्रभु के पास पहुंचना है और वन्दना करनी है। आज दिन तक ऐसी वन्दना किसी ने ना की हो ऐसी भक्ति मुझे करनी है। दर्शन, वन्दन की कितनी उत्कृष्ट भावना लेकिन मन में क्या विचार ऐसा दर्शन किसी ने न किया हो ऐसा दर्शन करूं / दूध का भरा भगोना उसमें काचर का बीज पड़ जाये तो क्या होगा-दूध फट जायेगा। ठीक इसी प्रकार की भक्ति दशार्णभद्र की! भावना उत्कृष्ट दर्शन की यह भगोने से भरे दूध के समान लेकिन ऐसी वन्दना किसी ने ना की हो, ऐसा दर्शन मैं करूं अहं भाव आ गया यह काचर के बीज समान हुआ। अहं और मम हो वहां नम्रता आ नहीं सकती। रीति जान लो तो नीति आ जायेगी। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org