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________________ थी ही, यह तो निचित था। निमित्त मिल गया गुरु महाराज का सुना ज्ञानी भगवंत पधारे है उसी क्षण विना विलम्ब प्रयाण कर दिया और पहुंच गया-गुरु चरणों में समर्पित हो गया श्रद्धा पूर्वक नमस्कार किया-जीवन को सार्थक बना लिया। अगर थोड़ासा विलम्ब करता, पिताजी की प्रतीक्षा करता तो शायद ही पहुंच पाता। एक बार प्रभु वन्दना रे। आगम रीते थाय / जिनवर पूजो // कारण सत्ते कार्यनी रे। सिद्धि प्रतीत कराय // जिनवर पूजो॥ पूजो पूजो रे भविक जिन पूजो / हारे प्रभु पूज्या परमानंद ॥जि.।। अनन्त गुणशाली भगवान को आगम-सिद्धान्तानुसार विधि से एक बार वन्दन हो जाय तो मोक्षरूप कार्य सिद्ध हो सकता है। वन्दन करते हुए आत्मा रूप उपादान गुणानुयायी बन गया तो निमित्त तथा उपादान दोनों कारण सत्य हो गये और दोनो की सत्यता के सद्भाव में कार्य की सत्यता निचित है। वीतराग प्रभु का शुभ निमित्त संप्राप्त होने पर आत्मा रूप उपादन कारण भी शुद्ध परिणतिमय बन जाता है और उससे शुद्ध सिद्धता रूप कार्य की सिद्धि हो जाती है। एक बार आगम की रीति से प्रभु के चरणों में समर्पित हो जाओं कार्य की सिद्ध हो जायेगी / राजकुमार ने कार्य की सिद्धि कर ली / देव रूप में अवतरित हुआ। फिर ज्ञान से देखा कि मैंने पूर्व जन्म में क्या पुण्य किया, अंतिम सयम में क्या निमित्त मिला जिससे मेरा देवयोनि में जन्म हुआ। पता चला रे मैं राजकुमार था शादी के दिन ही गुरु महाराज का आलम्बन मिल गया। आयुष्य की डोर टूट गई यहां पहुंच गया। गुरुमहाराजने मुझे यहां पहुंचाया अब मैं जाकर उनके दर्शन करुं पहुंच गया मृत्यु लोक में / राजवाटिका में जहां गुरु महाराज खड़े थे। राजा विलाप कर रहा था। प्रजाजन शोकातुर थे। प्रथम गुरु महाराज को वन्दन किया फिर राजा को जागृत बनाया कहों ? राजन् ! Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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