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________________ और प्रजा सहित राजा सज-धज कर सभी को साथ में लेकर गुरु महाराज के दर्शन करने पधारेगें। इसमें बहुत समय व्यतीत हो जायेगा। इसलिए मैं अकेला ही राजा को कहे विना रवाना हो जाऊं। तुरन्त दौड़ लगा ली, ज्ञान की पिपासा है, किसी की प्रतीक्षा नहीं की। दौड़ता जा रहा है। मन में तरंगे उठ रही है, एक ही लक्ष्य है। चल पड़ा! चल पड़ा! पहुंच गया प्रभु के चरणों में। मस्तक झुका दिया। क्षण की महत्ता को सार्थक बना लिया। मन-वचन-काया-तीनों की यूनिटि से गुरु-चरणों में समर्पित हो गया। इधर राजा, मंत्री, सेना तथा प्रजा आदि पूरे लवाजमें के साथ में राजवाटिका की तरफ़ खाना हुआ! जाते समय राजकुमार का पूछा राजकुमार कहां है दिखाई नहीं देता ? मंत्री ने कहां महाराज / राजकुमार तो कभी का रवाना हो गया उसने किसी की प्रतीक्षा नहीं की इन्तजार नहीं किया / राजा सजधज कर जुलुस के साथ गुरु-चरणों में पहुंचा / वंदन नमस्कार किया। पश्चात् देखा यह क्या सभी ने वंदन कर लिया लेकिन राजकुमार अभी तक झुका हुआ है इसका वंदन अभी तक पूरा नहीं हुआ, क्या हुआ ? राजा पास में आया बोला। बेटा! उठो काफ़ी समय हो गया हम आये उससे पहले ही आपका वंदन प्रारम्भ हो गया अभी तक पूरा नहीं हुआ उठो बेटा ! उठो! राजकुमार हो तो कुछ बोले उसने तो अपने समय को, क्षणों को सार्थक बना लिया! गुरु महाराज ज्ञानी थे बोले राजन आपका राजकुमार तो पहुंच गया लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। यह तो सिर्फ अब राजकुमार का शरीर है। सुनने के साथ तो राजा मूर्छित हो गया, यह क्या ? होश में आया रोने लगा विलाप करने लगा। मेरा बेटा कहां गया कौन ले गया। सारी प्रजा में शोक छा गया। सभी रोने लग गयें। हर्ष का वातावरण शोकमय बन गया। इधर राजकुमार का जीव स्वर्ग में अवतरित हो गया। शुभ भावों के साथ वंदन किया। जीव तो जाने वाला था ही आयुष्य की डोर तो टूटने वाली Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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