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________________ सतर्क बन जाओ, सावधान रहना है। जीवन क्षण भंगुर है। जीवन के प्रत्येक पदार्थ क्षणिक हैं। भगवान महावीर स्वामी ने कहां कि:- “समयं गोयम मा पमायए' हे गौतम एक क्षण भी प्रमाद मत करों / प्रमाद करोगे तो खो डालोगें। बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे। जिस सुख का स्वाद ले रहे हैं वह सुख क्षणिकहै, सुखाभास है। सुख-दुःख दोनों क्षण भंगुर है, हर्ष शोक क्या करना। फिल्म-हॉल में बैठ के पगले, क्या हंसना क्या रोना। यह भी देखा, वह भी देख ले, इनमें क्यों वह जाता। तू क्यों पल में ललचाता। गर्मी में पंखे की हवा खा रहे हैं / ठण्डे पदार्थ पी रहे हैं। यह सब क्षणिक है, यह सब अल्प समय तक जब तक स्वाद मिला। आत्मविभोर हो गये, परिणाम सोचा नहीं कि क्षणिक सुख के पीछे अनन्त दुःख है / संसार में जितने भी भोग है वह क्षणिक है / क्षण में उन्नति, क्षण में प्रगति, सर्जन, विसर्जन होते ही रहते हैं। क्षण भंगुर जीवन की कलिका, पल पल में मुरझाती है। तुम इस क्यों इतराते हो, यह धूली सात हो जायेगी। एक राजकुमार आज ही जिसकी शादी हुई है, हाथ में कंगन डोरा बधा हुआ है, मेंहदी लगी हुई है। प्रातः काल वधाई ले कर बगीचे का माली आया, बोला बाहर राजवाटिका में संतजन, सत्पुरुष, गुरुमहाराज पधारे हैं। महल में प्रवेश करते ही राजकुमार पहले मिला, वह स्नान करने जा रहा था। समाचार पहले राजकुमार को मिले। 'लोहा सोना कब होगा। पारस मणि के संयोग से ठीक इसी प्रकार सज्जनो की संगति कथीर को कंचन बना देती है। महापुरुष दूध में शक्कर का कार्य करते हैं। राजकुमार ने सोचा यह समाचार राजा के पास जायेगा तो राजा मंत्री को आदेश देगा। मंत्री सेना को तैयार करेगा। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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