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________________ (४.क्षण की महत्ता) समय के गतिशील चरण अपनी धुरी पर निरंतर बढते जाते हैं। क्षण, प्रहर, दिन-रात, ऋतु, सवंत्सर के कदमों से कालचक्र का अनंत पथ नापा जाता है। हर-चरण प्राचीनता और नवीनता का संगम स्थान बनता हुआ युग संधि का महत्त्वपूर्ण इतिहास अपने आपमें समेटे हुए आगे से आगे कदम बढाता जा रहा है। जिधर देखो उधर समय की चला चलीं लगी है / समय बदलता जा रहा है। समय को सार्थक किसने किया है ? तूफान हैं दौड़ा-दौड़ी है पर उसमें अचल क्या है ? जीवन और जगत की चंचल लहरों पर तैरता हुआ एक अचल तत्त्व है- “चिन्तन' / विचार ही शाश्वत है। जहां विचार नहीं, चिन्तन नहीं, मनन नहीं वह जीवन बेकार हैं / चिन्तन से पता चलता है कि सत्य-असत्य क्या है, अणु-परमाणु क्या हैं / ज्ञान-अज्ञान क्या है ? आत्मा का अखण्ड स्वरूप क्या है ? हमारी आत्मा की अखण्डता, शाश्वत का विश्वास सुदृढ़ बन जाना चाहिए। बाहर की अविश्वास, अधैर्य की हवा प्रवेश न पाये, उनका प्रवेश बन्द हो जाना चाहिए! आज कल हर स्थान पर बोर्ड लगा रहता है कि No Addmission Without Permition. ऑफिस में फेक्ट्री में, मकानों में, दवाखानों में सभी जगह इसी प्रकार के बोर्ड तथा घंटिया लगी रहती है। परन्तु मन पर आज दिन तक किसी प्रकार का बोर्ड तथा घंटिया नहीं लगी। इस लिए सभी अन्दर आते जाते रहे हैं। सुख-दुःख, संकल्प, विकल्प के कुत्ते और बिल्लियां बिना रोकटोंक भीतर घूस रहे हैं। जिसकी इच्छा हो घुस जाता हैं। विकारों के चूहें इधरऊधर दौड़ लगा रहे हैं। क्रोध और मान के कुत्तें चारों ओर झपट रहे हैं। वासना की बिल्लियां तुम्हारे ज्ञान का दूध पी रही हैं। विकार और असद् कल्पनाओं के चूहें धैर्य और विश्वास को कुतर-कुतर कर खा रहे हैं। अब जागृत हो जाओ Jain Education InternationBrivate & Personal Usevenly.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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