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________________ 48 कर रहा है। बत्तीसवे दिन सभी को छोड़ कर चला जायेगा। मन में बहुत दुःखी है। एक दिन धन्नाजी को आठों पत्नियां स्नान करा रही है। धन्नाजी चौकी पर बैठे हुए है। कोई तेल लगाती है कोई पंखों से हवा करती है कोई पानी डालती है आदि। इतने में ही क्या हुआ धन्नाजी की पीठ पर गर्म-गर्म बूंदे गिरी पीछे मुढ़ कर देखा, पत्नि सुभद्रा की आंखों में आंसू धन्नाजी ने पूछा सुभद्रा आंखों में आसू कैसे ! क्या हुआ ! किसी ने कुछ कहां / नहीं पतिदेव किसी ने कुछ नहीं कहा। मेरा भाई नित्य की एक-एक पत्नि का त्याग कर रहा है / बत्तीसवें दिन Last पत्नि का त्याग कर वैरागी बनकर महावीर के मार्ग का अनुकरण कर लेगा। इसका मुझे बहुत दुःख है। इसी कारण याद आते ही मेरी आंखो में आसु आ गये जो आपकी पीठ पर पड़ गयें। धन्नाजी ने कहा सुभद्रा तेरा भाई तो कायर है कायर ! रोज-रोज एक-एक क्यों छोड़ना, एकसाथ सबको छोड़ना चाहिए / सुभद्रा ने सुना सहन नहीं हुआ कहां पतिदेव-"कहना सरल है और करना कठिन है।" यह वाक्य धन्नाजी ने सुना। वाक्य हृदय को चुभ गया। सुभद्रा क्या कहती हो कहना-सरल और करना कठिन अब में कहना सरल करके बताऊंगा। धनाजी खड़े हो गये। बोले हट जाओ मेरे सामने से तीन हाथ दर मैं तो यह चला / आशक्ति से अनाशक्ति आ गई। आचरण में परिवर्तन आ गया। सुभद्रा देखती रह गई यह क्या पतिदेव हमसे विमुख हो गये। खूब मांफी मांगी कि मुझसे भूल हो गई। साथ में सभी पत्नियों ने भी हाथ पैर जोड़े। परन्तु धन्नाजी को तो करके बताना था। निकल पड़े और पहंच गये शालीभद्र के दरबार पर। दरबार पर पहुंच कर नीचे से ही आवाज़ लगाई / शालीभद्र ओ शालीभद्र। कायर शालीभद्र नीचे उतर / शालीभद्र ने अपने बहनोई की आवाज़ सुनी कि मुझे कायर कहकर पुकार रहे है। आत्मा हिल उठी। पता चल गया हां वास्तव में मैं कायर हूँ। रोज की एक एक पत्नी का त्याग कर रहा हूँ / शूरवीर Jain Education Internation Private & Personal Usevawy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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