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________________ आये हैं / शालीभद्र ने कहा श्रेणिक आये है तो भखार (कोठार)में डाल दो। बेटा को यह भी मालुम नहीं श्रेणिक कौन है ? उसे तो यह भी पता नहीं रहता था कि सूर्य किधर सेउदय होता है और किधर अस्त होता है। वह सातवीं मंजिल पर अपनी बत्तीस पत्निओं के साथ में भोग-विलास करता हुआ देवतायी आभूषण अलंकार को धारण करता है। कभी नीचे उतरता ही नहीं है तो क्या पता कौन आया कौन गया। उसने तो समझा कोई सामान आया है इसलिए कोठार में डालने का कह दिया। मां ने सुना वापिस पुन. आवाज़ लगाई। बेटा शालीभद्र नीचे उतरो। अपने 'नाथ'आये है / शालीभद्र ने सुना अपने नाथ आये है। मन में चिन्तन चलने लग गया। अरे मेरे ऊपर भी कोई नाथ है जरूर पुण्याई में कोई कमी रह गई है। अव ऐसी करनी करूं कि मेरे ऊपर कोई नाथ ना रहे ! शालीभद्र नीचे उतरा देखकर-राजा दंग रह गया कितना सुन्दर रूप रूई सा कोमल शरीर / अपनी वाहों में लेकर गोद में बिठा लिया। कुछ समय पश्चात् मां बोली-राजन इसे अब छोड़ दो यह अव आपके हाथों की गर्मी सहन नहीं कर सकेगा इसका शरीर बहुत ही कोमल है। राजा ने शालीभद्र को छोड़ दिया-वह ऊपर चला गया। राजा भी गौभद्रा सेठानी से वार्तालाप करके प्रसन्न वदन अपने महल के लिए रवाना हो गया। शालीभद्र ऊपर पहुंचा मन में तो “नाथ"शब्द का चिन्तन चल ही रहा था कि मेरे ऊपर भी 'नाथ'-अब मुझे ऐसा कार्य करना चाहिए जिसे मैं स्वयं नाथ बन जाऊं मेरे ऊपर कोई नाथ न रहें। विचारों की श्रेणी चढ़ते-चढ़ते लक्ष्य पहुंच गया-मन में रोज की एक-एक पत्नि को छोड़ना निश्चय कर लिया। इस प्रकार बत्तीस पत्निओं को छोड़कर-बत्तीसवें दिन निकल पडूंगा महावीर के मार्ग पर / रागी मन विरागी बन गया। एक “नाथ"शब्द ने शालीभद्र के जीवन को प्रकाशमय बना दिया। इधर सुभद्रा ने सुना कि मेरा भाई रोज की एक-एक पत्नि का त्याग Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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