________________ समय तक रानी बोली नहीं, राजा के बार-बार पूछने पर रानी ने कहा / राजन जिस रत्न कम्बल को आप मुझें नहीं दिला सके वह रत्नकम्बल आज राजदरवार की महतरानी ओढ़ कर आई / राजा को आश्चर्य हुआ। मेहतरानी को बुलाया पूछा तू यह कहां से लाई / महतरानी ने कहा गोभद्रा सेठानी के यहां से। ऐसा एक-नहीं सोलह कम्बल मैं लाई हूँ / राजन् आप नहीं जानते कि गौभद्रा सेठानी के पुत्र शालीभद्र तथा बत्तीस बहुएं है। वह रोज जिस वस्त्र तथा आभूषणों को पहनती है वह दूसरे दिन उतार कर गटर में डाल देती है। राजा को सुन कर बहुत ही प्रसन्नता हुई / मेरी नगरी में इस प्रकार के धनीमानी प्रतिष्ठित शेठ निवास करते है और मुझे पता ही नहीं। जरूर अव मैं उसके घर जाऊंगा और गौभद्रा तथा उसके पुत्र शालीभद्र के दर्शन करके अपने आपको धन्य मानूंगा। गौभद्रा सेठानी के यहां समाचार भिजवा दिया। गौभद्रा सेठानी को पता चला कि राजगृही नगरी के मालिक श्रेणिक उसके घर पधार रहे है तो उसने उनके आगमन की सारी तैयारियां करवा ली। इधर राजा भी सजधज कर रानी चेलना सहित रथ पर असवार हो ठाठवाठ के साथ गौभद्रा सेठानी के यहां पहुंचा। सेठानी ने राजा को खूब आनंद और उत्साह के साथ बधाया। गोभद्र सेठ तो शालीभद्र छोटा था तभी इस संसार से विदा हो गये थे। सारे परिवार को संभालने का भार सेठानी पर ही था। राजा ने अन्दर प्रवेश किया -महल को देखते ही दंग रह गया। गौभद्रा सेठानी राजा को पहली मंजिल , दूसरी मंजिल, तीसरी मंजिल, चौथी मंजिल तक ले गई। महल की बनावट तथा कारीगरी देखने लायक थी। राजा सोचने लगा-इस प्रकार का महल तो मेरा भी नहीं है। राजा जहां पानी देख रहा है वहां पानी नहीं स्थान है। जहां स्थल देखता है वहां स्थान नही पानी है। चौथी मंजिल पर पहुंचने पर गौभद्रा सेठानी ने अपने पुत्र शालीभद्र को आवाज लगाई। बेटा शालीभद्र नीचे उतर / बेटा ने आवाज सुनी। हां मां क्या काम है। बेटा श्रेणिक Jain Education InternationErivate & Personal Usevownly.jainelibrary.org