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________________ 45 लगे, लगता है इसकी “डागली खिसक"गई है। पुनः माता ने कहा निकालो सोलह कम्बल / व्यापारियों ने निकाले हाथे में लेकर एक-एक सम्बल के दोदो टुकड़े कर दिये। सोलह के बत्तीस बना दिये। और खजांची (केशियर)को कहां इनका हिसाब कर दो। खजांची सोलह लाख स्वर्ण मुद्राए ले आया। यह देख व्यापारी चकित रहे गये / हम तो समझ रहे थे कि माताजी कि डागली खिसक गई है पर यह तो वास्तविक निकला। स्वर्ण मुद्राएं लेकर खुशी-खुशी नगरी की प्रशन्सा करते हुए अपने देश को रवाना हो गये। इधर गोभद्रा शेठानी ने बत्तीस बहुओं के लिए बत्तीस टुकड़े ही किये। उन्हों ने अपना हिस्सा नहीं किया ना ही अपनी इकलौती बेटी सुभद्रा का। आज बहूओं के लिए साड़ी लाते है तो पहले अपनी और बेटी की बाद में बहूओं की। गोभद्रा शेठानी बहूओं को बेटी समान समझती थी। जहां बहू को बेटी सदृश रखा जाता है वहां घर स्वर्ग बनता है / बहू को बहू रूप में देखा तो घर नरक बन जाता है। गोभद्रा शेठानी का घर तो स्वर्ग ही था। रोज की 33 पेटियां स्वर्ग से उतरती थी। इकलौता बेटा शालीभद्र इतना पुण्यशाली था। पूर्व जन्म में मासक्षमण के पारने मुनि भगवंत को उलट भावों से खीर बहराई थी ! पूर्व की पुन्याई से शालीभद्र बना ! सुपात्रदान की महिमा नें कहां से कहां पहुंचा दिया। गोभद्रा शेठानी ने बत्तीस बहूओं को बुलाया और एक-एक रत्न कम्बल दिया / बहूओं ने दूसरे दिन प्रातःकाल स्नान किया, शरीर को पौंछा और कम्बल गटर में डाल दिये। दूसरे दिन सफ़ाई करने महतरानी आई, गटर खोला और रत्नकम्बल निकाल लिए। घर ले गई। दो दो टुकड़ो तो जोड़ कर सोलह कम्बल बना लिए / रत्नकम्बल ओढ़कर महतरानी राजदरबार में सफाई करने गई। रानी चेलना ने देखा यह कया जिस कम्बल को मैं नहीं खरीद सकी उसको एक महतरानी पहन कर आई है। गुस्सा आ गया। दुःखी मन महल में एक तरफ़ जा कर बैठ गई। राजा आए रानी को दुःखी देखा पूछा रानी क्या हुआ। कुछ Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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