________________ एक कम्बल लेने की इच्छा हो गई। राजा को कहा। राजा ने उसकी कीमत पूछी। व्यापारियों ने एक लाख स्वर्ण मुद्राए बताई। सुन कर राजा दंग रह गया। एक कम्बल दिला दूं तो मुझें दूसरी रानियों के लिए भी लेना पड़ेगा! ऐसे तो सारा खजाना रिक्त हो जायेगा। स्त्रियों की तो यह आदत होती है कि एक के पास साड़ी देखी तो वैसी ही साड़ी मुझें लाने की। सासू एक बहु को गहना बनवाती है तो दूसरी बहुओं को भी बनवाना आवश्यक, नहीं तो घर में कलह उत्पन्न हो जाता है। राजा श्रेणिक ने भविष्य को देखते हुए इन्कार कर दिया। रानी चेलना को बहुत दुःख हुआ। व्यापारी निराश मन वापिस जाने लगे। रास्ते में आपस में बाते करते जा रहेहै कि इस नगरी की हमने इतनी प्रशंसा सुनी और राजदरबार में हमारा एक कम्बल भी नहीं बिका। जब राजा ही हमारा कम्बल नहीं ले सका तो प्रजा क्या लेगी। दोनों ही नगरी की निंदा करते हुए जा रहे हैं। रास्ते में गौभद्रा शेठानी का महल आया। गोभद्रा शेठानी उस समय झरोखे में बैठी हुई थी। उसने अपनी नगरी की इस प्रकार निंदा सुनी तो मन दुःखी हो गया। वर्तमान समय में भाई-भाई की निंदा करता है, बेटा बाप की निंदा करता है, उसके मन में दुःख नहीं होता। पहले के जमाने में अपनी नगरी तथा राजा की निंदा भी कोई नही सुन सकता था। गोभद्रा शेठानी ने उन दोनों व्यापारियों को अपने महल में बुलाया और पूछा क्या बात बनी जो आप हमारी नगरी की निंदा करते जा रहे है। व्यापारियों ने कहा ! माता जी जिस आशा को लेकर हम आये थे और निराश हो कर जा रहे है। आपकी नगरी में हमारा एक भी रत्न कम्बल नहीं बिका। राजदरबार से हम आ रहे है। गोभद्रा शेठानी बोली आपके पास कितने कम्बल है और क्या कीमत है। उन्होंने कहां सोलह और एक कम्बल की कीमत एक लाख सुवर्ण मुद्राए / बस ! मेरे तो 32 बहुऐं हैं, कम्बल सोलह हैं और नहीं ?यह सुन कर वयापारी आपस में कहने Jain Education Internationerivate & Personal Useverowy.jainelibrary.org