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________________ 42 साथ हमेशा से ही मूर्छा चली आ रही है। जागृति है वहां उजाला है, मूर्छा है वहां अंधेरा है। जहां पर उजाला है वहां अन्धकार, टिक नहीं सकता है। सूर्य उदित होते ही रात्रि का अन्धकार समाप्त / ज्ञान का दीप बुझा जीवन में अन्धकार हो गया। कमरे में दीपक जलाया, सारा कमरा प्रकाशमय हो गया, अन्धकार भाग गया। अपने जीवन में ज्ञान का द्वीप प्रगट करना है। संत एकनाथ पुजारी थे। भगवान की पूजा सेवा करते थे। एक दिन एक रूपये का हिसाब नहीं मिला / महन्त जी सो गये थे। एक रूपये के हिसाब की गड़बड़ में खाना नहीं खाया, रात को नींद नहीं आई। 10 बजे गये / 12 बजे अचानक हिसाब मिल गया तो नाचने कूदने लग गया, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा, मिल गया, मिल गया। रात्रि के बारह बजे इतनी ज़ोर से चिल्लाने के कारण महन्त जी की नींद खुल गई। पूछा ! एकनाथ क्या हुआ ? इतना क्यों नाच-कूद रहे हो, जोर-ज़ोर से बोल रहे हो। एकनाथ हंसता, नाचता, कूदता हुआ महन्त जी के पास आया और बोला महन्त जी एक रूपये का हिसाब मिल गया। एकनाथ एक रूपये का हिसाब मिलने पर इतना आनन्द तो अनादि अनन्त समय से बिगड़ी हुई अपनी आत्मा का हिसाब मिल जाये तो कितना आनंद आयेगा। “अनादि का हिसाब'महन्त जी के एक वाक्य ने एकनाथ के जीवन को झखझोर दिया। जीवन उज्जवल बन गया। अनादि की नींद खुल गई। महन्त जी को कहा। सम्भालो यह चावी और में चला। इसी प्रकार बंगाली बाबू को पुत्री के एक वाक्य ने जगा दिया ! कलकत्ते के धनीमानी शेठ बंगाली बाबू के एक पुत्री थी। पुत्री छोटी थी तभी पत्नि बीमारी के कारण संसार से बिदा हो गई। पुत्री का सारा कार्यभार बंगाली बाबू पर आ गया। बड़े प्रेम तथा वात्सल्य भाव से पुत्री को रखते थे। पुत्री बड़ी हुई, पढने जाने लगी। चौमासे का समय था। एक दिन स्कूल से आई, नास्ता किया, ट्यूशन चली गई। ट्यूशन से घर आई तब तक 6 बज गये / घर में Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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