________________ 40 "Point of no return"इसके पीछे लोटने का Chance नहीं रहता है। समर्पण भाव हो जाये तो तेरा कुछ नहीं, तन नहीं, धन नहीं, जन नहीं, वैभव नहीं, मकान नहीं, तेरा स्वरूप भी कुछ नहीं रहता / वास्तविक स्वरूप तो तेर ज्ञानमय, दर्शनमय, चारित्रमय है / इस समर्पण में कुछ और नहीं केवल उत्सर्ग झलकता है। समर्पण और अर्पण भाव में कुछ भी अवशेष नहीं रहता है। "समर्पण लो सेवा का सार, सजल संस्कृति का यह पतवार आज से यह जीवन, उत्सर्ग, इन्ही पगतल पर विगत विकार।" समर्पण भाव नदी के वहाव की तरह है उसमें तैरने की आवश्यकता नहीं, स्वयं ही तिर कर किनारे पहुंच जायेगा। सच्ची श्रद्धा पूर्वक शरण स्वीकार की है तो समर्पण भाव स्वतः ही आ जायेगा। Jain Education Internationerivate & Personal Usenany jainelibrary.org Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org