________________ 39 तव यह शरण में जाने की अन्तिम स्थिति है। शरण स्वीकार करता हूँ तव आगे कोई गति नहीं है ,अवरोध नहीं है / शरण में जाता हूँ वहां बीच में व्यवधान आ सकता है, लौट भी सकता है। महावीर का सूत्र है “अरिहंते सरणं पवज्जामि"अर्थात् अरिहंत की शरण स्वीकार करता हूँ। यहां कोई व्यवधान नहीं। एक भक्त भगवान की शरण में चला जा रहा हैं। उस समय कृष्ण भोजन कर रहे थे, रूकमणी परोस रही थी। वह भक्त हरे राम हरे कृष्ण, हरे हरे कहता चला जा रहा था / थोड़े समय में बोलते-बोलते शरीर का भान भूल गया। लोगों ने पागल समझ कर पत्थर मारना शुरू कर दिया, वह तो तान के साथ हरे राम, हरे कृष्ण हरे हरे बोलता ही जा रहा है, लोगों ने उसे खूब परेशान किया कृष्ण महाराज के पास तार पहुंच गया, भक्त ने मुझे पुकारा है, मेरी शरण में आ रहा है, फौरन उठे और दौड़ते-दौड़ते आगे, सहायता हेतु जाने लगे। इतने में ही भक्त ने स्वयं पत्थर उठाया और लोगों को मारने लगा। कृष्ण यह देख धीरे-धीरे लौटने लगें। रूकमणी ने पूछा महाराज खाना खाते-खाते इतनी तेज दौड़ कर कहां गये थे और अब धीरे-धीरे आ रहे है / कृष्ण ने कहा एक भक्त मेरी शरण में आ रहा था। बीच में व्यवधान आया, उसने अपनी सुरक्षा अपने हाथ में ले ली, भक्ति का तार टूट गया / पत्थर हाथ में ले लिया। इसलिए में वापिस आ गया। अर्पण वाली भक्ति और समर्पण वाली भक्ति को पावर हाऊस से Light मिलती है। समर्पण भाव कम हुआ, पावर हाऊस से कनेक्शन कट जाता है / मीरां ने कृष्ण भगवान की शरण ली। “मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।" सम्पूर्ण जीवन कृष्ण भगवान को समर्पित था। राजा ने जहर का प्याला भेजा। मीरा ने भगवान का स्मरण कर पी लिया। 'जहर' भी अमृत बन गया। मीरां की भक्ति सच्ची थी, समर्पण भाव वाली थी। इसलिए उसका जीवन निर्भय था। जहां गच्छामि'शब्द आता है वहां मंजिल पहुंचने में व्यवधान आ जाता है। "पवजामि"सूत्र के पीछे Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org