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________________ “सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज // " “है अर्जुन, सब धर्मो को छोड़ कर मेरी शरण में आ जा। कृष्ण जिस युग में बोल रहे थे वह युग अत्यन्त सरल, मृदुल श्रद्धा का था। किसी के मन में उस समय ऐसा नहीं हुआ कि कृष्ण कैसे अहंकार की बात कर रहे हैं कि तू सब कुछ छोड़ मेरी शरण में आ। अर्जुन के मन में किसी भी प्रकार का विकल्प नहीं उठा। लेकिन बुद्ध और महावीर तक आदमी की चित्त दशा में बहुत फर्क है। इसलिए हिन्दु मत “मामेकम् शरणम् व्रज पर केन्द्र मान कर खड़ा है। बुद्ध और महावीर को अपनी दृष्टि में आमूल परिवर्तन करना पड़ा। महावीरने नहीं कहा कि तुम सब छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ। नाहिं बुद्ध ने कहां। दूसरे छोर से सूत्र को पकड़ना पड़ा। जो बुद्ध का सूत्र है वह साधक की तरफ़ से है और जो महावीर का सूत्र है वह भी साधक की तरफ़ से है। सिद्ध की तरफ़ से नहीं हिन्दू और जैनमत में मौलिक भेद यही है कि हिन्दू मत में सिद्ध कह रहा है-आ जाओ मेरी शरण में ! जैन मत में साधक कहता है कि मैं आपकी शरण में आता हूँ। इससे पता चलता है कि कृष्ण जब बोल रहे थे तव श्रद्धा का युग था। और जब महावीर बोल रहे थे तव तर्क का युग था। कल्पसूत्र में भी इसका वर्णन आता है। महावीर कहें मेरी शरण में आ जाओ तो तत्काल लोगों को लगेगा कि बड़े अहंकार की बात है। बुद्ध के समय बुद्ध के शिष्यों ने कहां-बुद्धं सरणं गच्छामि, संघं सरणं गच्छामि, धम्म सरणं गच्छामि / बुद्ध की शरण में जाता हूँ, संघ की शरण में जाता हूँ, धर्म की शरण में जाता हूँ। यहां महावीर और बुद्ध के सूत्रों में भी फर्क है। वह दृष्टि में लेना जरूरी है। ऊपर से देखने पर दोनों सूत्र समान दिखते है। गच्छामि हो, वा पवज्जामि हो शरण में जाता हूँ या स्वीकार करता हूँ। एकसे ही मालूम पड़ते है / परन्तु यहां भेद है / जब कोई कहता है "बुद्धं सरणं गच्छामि'' अर्थात् बुद्ध की शरण में जाता हूँ तो यह शरण में जाने की शुरूआत है। पहला कदम है / और जब कोई कहता है कि “अरिहंते सरणं पवजामि'' Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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