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________________ रवाना हो गये। पत्नी को घर पर छोड़ दिया। पत्नी ने सोचा मेरा मन बैचेन है, दर्शन किये बिगर रहा नहीं जाता। इसलिए बिना तैयार हुए ही घर से निकल पड़ी। सोचती है दूर से दर्शन करके शीघ्र ही वापिस आ जाऊंगी, किसी को पता भी नहीं चलेगा। बाल बिखरे हुए है। वस्त्र भी अस्त-व्यस्त है। दौड़ती हुई चली जा रही है। रास्ते में बादशाह नमाज पढ़ रहे थे। मखमल का गलीचा बिछा हुआ था। वह महिला गलीचे पर पैर रखती हुई दौड़ती जा रही है। बादशाह ने देखा यह स्त्री कौन-इसकी इतनी हिम्मत कि बादशाह के गलीचे पर पैर रख कर मस्ती से दौड़ती जा रही है। क्या इसे पता नहीं यह कालीन किसका बिछा हुआ है / बादशाहने आवाज़ लगाई पक़ड़ो पक़ड़ो / महिला ने कहां बादशाह अभी मुझे जाने दो, आते समय मैं स्वयं पक़ड़ जाऊंगी। महिला स्टेशन पर पहुंची। गाड़ी से उतरते हुए अपने पति के दूर से ही दर्शन करके वापिस रवाना हो गई। बादशाह नमाज पढ़ रहा था। उसी जगह आ कर खड़ी हो गई। पूछा ! बादशाह मुझें क्यों रोक रहे थे। बादशाह ने कहा क्या तुम्हें मालुम नहीं था कि यह गलीचा बादशाह का है। अपनी धुनमें पैर रख कर दौड़ती हुई जा रही थी ! महिला ने कहा बादशाह आप उस समय क्या कर रहे थे। मैं नमाज पढ़ रहा था। महिला ने तुरन्त पूछा / किससे मिलने जा रहे थे। मैं अपने खुदा से मिलने जा रहा था। बादशाह माफ़ करना ! मैं अपने शरीर के देव से मिलने जा रही थी। इसलिए भान भूली हुई थी , पता नहीं चला यह गलीचा किसका है। इसलिए मुझे शरीर के दैव के दर्शन हो गये। परन्तु बादशाह आप तो आत्मा के देव से मिलने जा रहे छे। उस बीच कौन आया, कौन गया अपना लक्ष्य भूल गये तो फिर आत्मा का देव (खुदा)की प्राप्ति कैसे होगी। मेरी शरण तो लौकिक थी। आपकी तो लोकोत्तर थी। बादशाह ने कहा बहन तुमने आज मेरी आंखे खोल दी। जीवन को झखझोर दिया। लोकोत्तर शरण-कैसी इस विषयमें, कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहां Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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