________________ 36 है।शरण उसका पकड़ना चाहिए जो सुरक्षित हो, सलामत हो। ऐसी शरण इस जगत में वीतराग-देव की है। उसके पास जाने वाले को अशरणता का अनुभव नहीं होता / दुःख आने पर भी अदीनता ऐसी-की ऐसी ही बनी रहती है। परमात्म की शरण में ऐसी ताकत कहां से आई / यह जानने के लिए परमात्मा के जीवन को जानना पड़ेगा। भगवान महावीर का जन्म हुआ तब देवता, तथा इन्द्र महाराजा भगवान को मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेककरने लगे। पानी ऊपर तक आने लगा। सभी घबराने लगे। प्रभु पानी में बह जायेगें। भगवान तीन ज्ञान के धनी थे। उन्होंने जाना सभी धबरा रहे हैं / तुरन्त पैर का अंगूठा पानी को लगाया ।पानी थम गया। प्रभु की शक्ति को जन्मते ही सभी ने देखा। "सभी जीव करु शासन रसी, ऐसी भाव दया मन उल्लसी।" सर्व जीवों के प्रति करूणाभरी भावना से जो साधना करता है, वह आत्मा प्रबल पुण्य का स्वामी अवश्य बनता है। इतिहास ऐसे अनेकों उदाहरणों से भरा पड़ा है। वर्तमान में मानव अकसर जिसकी शरण में जा रहा है वह भौतिक शरण है। भौतिक शरण अमुक समय के लिए बेभान बना देती है। आध्यात्मिक शरण परिपूर्ण है, वह सदा सर्वदा सुखी सम्पन्न बनाती है। इन्द्र धनुष जिस प्रकार थोड़े समय के लिए अपने रंगो का प्रदर्शन करता है बाद में विलीन हो जाता इसी प्रकार की दशा लौकिक शरण की है। साधना के माध्यम से जिसने ख्याति प्राप्त की है वह शरण लोकोत्तर है, स्थायी है। लौकिक शरण के विषय में एक स्त्री जिसका पति 12 वर्ष पश्चात विदेश से आ रहा है। कौन सी ट्रेन से किस समय आयेगा सब निचित समाचार आ गये है। मां कहती है मेरा बेटा आ रहा है मैं लेने जाऊंगी। बेटा कह रहा है पापा आ रहे है मैं पहले पापा के चरणों में पडूंगा। भाई कहता है, भइया आ रहा है में पहले भइया से मिलूंगा / पनि कहती है पतिदेव आ रहे है मैं पहले दर्शन करूँ। घर पर रहना भी आवश्यक। प्रातः काल होते ही सभी तैयार हो कर Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org