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________________ ((२.शरण-समर्पण) अनन्त-अनन्त समय व्यतीत हो गया, संसार में भ्रमण करते करते / शरण नहीं पकड़ा जिनेश्वर का दर्शन सामर्थ्य देने वाला होता है। अशुभ से शुभ प्रवृत्तियों की ओर ले जाने वाला है। आध्यात्मिक जागृति लाता है। आज दिन तक मित्थात्व में पड़ा रहा, कामना-वासनाओं में समय बर्बाद किया। अब आत्मा में निवास करना है, रमण करना है ! रमण किसके माध्यम से करेगें? वह है शरण / शरण ! किसकी ? वीतराग प्रभु की, महापुरुषो की। पहले शरण बाद में समर्पण / शरण किसी की भी प्राप्त करो वह हर प्रकार से हमारी रक्षा करती है। शरण के माध्यम से रक्षा होती है, सरंक्षण होता है, सुरक्षा होती है ! शरण दो प्रकार की होती हैं। (1) लौकिक शरण (2) लोकोत्तर शरण लौकिक शरण: जड़ पदार्थो के साथ इसका सम्बन्ध रहता है। अनन्त भवभ्रमणा को बढ़ाने वाला है। बालक-बालक में जब मनमुटाव हो जाता है, झगड़ा होता है, मारना, पीटना चालू हो जाता है तब दो बालकों में से एक बालक अपनी मां की गोद में जा कर बैठ जाता है। मां की गोद में पहुंचने पर वह अपने आपको सुरक्षित समझता है। वहां उसे किसी प्रकार का भय नहीं, डर नहीं रहता है। उसके लिए यह शरण रक्षक बनती है / पत्नी पति की शरण लेती है। वह सोचती है मैं अबला हूँ, नारी हूँ। यह हुई लौकिक शरण जो अनादि अनन्त काल से स्वीकारते चले आ रहे है। लोकोत्तर शरण : लोकोत्तर शरण आत्मिक उन्नति का शरण है। जिसे प्राप्त करने पर भवभ्रमण मिट जाता है। जितने भी सांसारिक प्राणी है शरण अवश्य लेते Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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