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________________ छीना जायेगा। समझ लो सोंच लो इसका विपर्यास अवश्य ही होगा। चाहे पुण्य रूप में या पाप रूप में। भोग, योग, संयोग सब मिला उसके साथ उपयोग जोड़ दिया तो वह संयोग उपयोग सद उपयोग बन जायेगा, जिन्दगी स्वर्णिम बन जायेगी। वियोग की कड़िया सतायेगी नहीं, दुःख नहीं होगा / खाना खाया तीन घंटे पश्चात, पुनः भूख लग आती है। संसार के कार्य किये उसके बाद कामना-वासना बढती चली जाती है, पूर्ति करते है वापिस बढ़ती है। ___ मानव जन्म को समझते हुए जिये, आंख मूंद कर नहीं, आंख खोल कर जिये। संत-पुरुष, ऋषि-मुनि, राजा-महाराजा, चक्रवर्ती सभी चले गये। उनकी चाम से जो कार्य हुए उनकी तरफ हमें अपना ध्येय ले जाना है ! सबको जाना है, मार्ग सबका एक ही हैं। लेकिन एक सद् उपयोग से गया, एक उपयोग बिना गया। जो उपयोग पूर्वक गया उसका जन्म-और मरण सार्थक हुआ। जो उपयोग बिना गया उसका जन्म-और-मरण निरर्थक गया। यानि खाली की खाली चला गया। संयोग और वियोग इन दोनों कड़ियों के बीच उपयोग की शृंखला को नहीं भूलना चाहिए। जिन्दगी का उपयोग महापुरुषों ने किया-हम भी उपयोग मय जिन्दगी बनाये। जगाने वाले मिल जाये जग पड़े। सद् प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर हो जाये। जाना निश्चित जीना अनिश्चित है यह ध्यान में रख कर चलना है। न जाने कब मृत्यु का हिमपात हो जाये कुछ पता नहीं / इसलिए ज्ञानी कहते हैं सदैव ही जागृत हो कर उपयोग मय जीवन व्यतीत करते हुए आंख खोल कर जीना चाहिए जिससे वियोग की स्थिति प्राप्त न हो। औरआत्मा के चिद्स्वरूप को हम प्राप्त कर ले / जन्म-मरण की श्रृंखला से मुक्त हो कर यह आत्मा परमात्मा स्वरूप बन जाये। *** Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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