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________________ सहन नहीं कर सकते तो शांति कहां से मिलेगी। मन को धन वैभव के ढेरों से नहीं तोड़ोगे तब तक तुम छुटोगे नहीं / श्वास का संचय कब छूटेगा यह नहीं पता। शेठ जागृत बनने के लिए आये हो तो सब कुछ छोड़ना पडेगा। "कितने ही घर बसाये, कितने ही घर उजाड़े। स्थायी रहा न राही, श्वासों के घटते-घटते॥" सेठ तुम अपने आपको सेठ मानते हो, केवल बचनो से ही कह रहे हो मुझे शान्ति पानी है / नहीं मिलेगी जबतक अन्तरात्मा इससे विमुख नहीं होगा। "तुम मत बनना भैया, जड़ दृश्यो में दिवाना // " यह लक्ष्मी का वैभव-धन नाशवान है। इसकी अवस्था का हमें पता नहीं यह तुझें छोड़ कर जायेगा या तू इसे छोड़ कर जायेगा। दो में से एक अवस्था निश्चित है। ज्ञानी कहते हैं। "तन से सेवा कीजिए, मन से भले विचार। धन से इस संसार में, कीजे पर उपकार॥" एक ठेकेदार ने 30 लाख का ठेका लिया। पुल निर्माण हो गया। 2 लाख अपने पास रख लिया। पुल पर आवागमन चालू हो गया। एक सुबह ठेकेदार कुर्सी पर बैठा पेपर पढ़ रहा है अचानक पेपर पढ़ते-पढ़ते कुर्सी से लुढक गया। होश आया अरे यह क्या जिस पुल का मैने निर्माण कराया उसी पुल पर से आने वाली गाड़ी में मेरा परिवार आ रहा था / गाड़ी पुल पर आई, वैसे ही पुल टूट गया, गाड़ी के डिब्बे नीचे नदी में पड़ गये। सारा परिवार खत्म हो गया। अव वह रो रहा है। दुनिया ने पूछा क्या हुआ? कहां “गड्डा खोदा और को खुद को कुंव तैयार / ' जो करता है उसी को पकड़ा जाता है / जैसा बीज़ बोया जायेगा वैसा ही फल तैयार होगा। जैसी नींव होगी वैसी ही ईमारत तैयार होगी। किसी की रोटी छीनोगें, प्रेम छीनोगे तो तुम्हारी रोटी तथा प्रेम Jain Education InternationBrivate & Personal Usevowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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