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________________ वह तो जानते है जिस चीज़ का निर्माण किया है उसका विध्वंस निश्चित है / जिस चीज़ का संयोग पाया वह वियोग की स्थिति को अवश्य प्राप्त करेगा। रावण की स्थिति भी यही थी। औरंगजेब भी आया सिकंदर भी आया, सब छोड़ कर चले गये। “नन्दन की नौ गई, वीसल की वीस गई, रावण की सब गई, उतने न आये साथ, इतने न जाये साथ, इतही को ओरो तोरो इतही, गुमाओगे। हेम चीर हाथी-घोड़ा कांहु के न चले साथ, बाट के बटाऊं, जैसे कल ही उठ जाओगे। कहत छज्जू कुमार, सुन लो माया के यार, मुट्ठी बांधे आये है, पसार हाथ जाओगे।" . राजा उठा / सन्यासी महाराज ने उनके मस्तिष्क तथा हाथ के ऊपर की रेखाओं को दृष्टिपात किया, और हंसी आ गई। राजा ने पूछा महाराज क्या हुआ मुझे देख कर आप हंसे क्यो ? सन्यासी बाबा ने कहा महाराज बताने से कुछ नहीं होगा बल्कि आप चिन्ता के सागर में डूब जायेगे। राजा माना नहीं, हार कर सन्यासी बाबा को बताना पड़ा। आज दिन तक जिस वैभव को तुम पा रहे हो उन्हीं सुखों को त्याग कर आज से सातवें दिन तुम्हारा वियोग हो जायेगा। धक्का लग गया। आज 50 हज़ार का घाटा हो गया, सुना उस समय चाहे हम धार्मिक क्रिया कयों न कर रहे हो मन लगेगा नहीं। पल्लव राजा के जीवन में भी धक्का लगा / जिस वैभव को देख कर मैं फूला नहीं समाता हूँ उसका वियोग हो जायेगा। पुनः पूछा, बाबा मैं मर कर जाऊंगा कहां! मरोगे निश्चिंत एक वस्त्र से दूसरा वस्त्र बदलोगे। मकान, मौहल्ला, कमरे, एशआराम नहीं बदलेगा, तुम्हारा चोला, यानि शरीर बदल जायेगा। तुम अपनी रानियों के नहाने के गटर में पंचरंगी कीड़ा बन जाओगें। मैं इस योनि में जाऊंगा मुझें तो Jain Education Internationerivate & Personal Usevowily.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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