________________ 30 विकसते मुरझाने को फूल, उदित होता छिपने को चंद। शून्य होने को मरते मेघ, मन्द होता जलने को द्वीप // पुष्प खिलते हैं मुरझाने के लिए, चंद्र निकलता छुपने के लिए, मेघ भरते है शून्य होने के लिए, दीप जलता है मन्द होने के लिए। यही जीवन की महिमा है। जन्म है वहां मरण निश्चित है / महापुरुषों ने इसको समझा है / उन्होने कहा-वह मर गया मुझें भी मरना है। यह बात समझ में आ गई तो वह शून्य के बाद चिंतन में चल पड़ता है वह फिर आंख मीच कर, किसी की रोटी छीनके नहीं, अन्याय, अनीति करके नहीं, ध्वंस करके अपना निर्माण नहीं करेगा। वह दूसरो को बना कर, सर्जन करके जियेगा / हमें चिंतन करना हैं कि हमें यहां से एक न एक दिन अवश्य ही जाना है। एक घण्टे के बाद क्या होगा, किसी को पता नहीं। जिस, धन दौलत, सत्ता और सम्पत्ति के आगे सभी मशहौल बन रहे हैं, क्या वह स्थायी रहने वाला है। यह नहीं समझते कि इन सबका एक दिन अवश्य वियोग होगा। पल्लव राजा के पास एक सन्यासी बाबा आया। राजा सोया हुआ है / सन्यासी बाबा बैठ गया। जिसका जीवन गति से प्रगति की ओर बढ़ रहा है, जिसके पास संवर है उसी का प्रदर्शन करने में वह लगा हुआ है। एक व्यक्ति बंगला बनाता है, वह चाहता है कि मेरा बंगला बहुत ही अच्छा है। सब उसकी प्रसन्नसा करें यहां तक कि साधु भगवंतों को भी ले जाया जाता है कि महाराज हमारे बंगले में पगले करों। पगले के साथ-साथ यह भी बताते है कि महाराज यह हमारा डाइनिंग रूम है, यह बैडरूम है, यह किचन है, यह स्टोर है, यह बाथरूम है, यह घूमने-फिरने के लिए बगीचा है। बताने के साथ महाराज के मुख की तरफ दृष्टि रहती हैं कि महाराज क्या फरमाते है, आशा रखता हैं कि महाराज मेरे घर की प्रशंसा करें। महाराजों से भी यह अपेक्षा रखी जाती है ।अरे ! भले मानस साधु महात्माओं को तुम्हारे बंगले से क्या लेना देना, वह तो इन सबसे विमुख है। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org