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________________ अहमदावाद से ही नहीं अपितु दूर-दूर से लोग दर्शनार्थ आते हैं। यह दादागुरु के चमत्कार-एवं आपश्री की प्रेरणा का ही प्रतिफ़ल है। कार्तिक सुदि चतुर्थी को यहां पर मेला भरता है। आप श्री को अहमदाबाद के बिखरे हुए खरतरगच्छ को एकत्रित करने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। फिर भी आप अडिग रहे। तीन चार चातुर्मास करके आपश्री ने बिखरे हुए खरतरगच्छ को एकत्रिक करके एवं मजबूत बना कर जिनशासन की शान बढ़ाई है। जिस प्रकार बिखरे हुए मोतियों को धागे में पिरोकर हार बनता है और वही हार फिर गले की शोभा बढ़ाता है इसी प्रकार आप श्री ने भी खरतरगच्छ की शोभा बढाई है। आज हमें यह मंदिर, दादावाड़ी एवं विशाल श्री जिनदत्त सूरि खरतरगच्छ भवन देखने को मिल रहा है वह आपके ही अथक प्रयासों का परिणाम है / अहमदावाद खरतरगच्छ संघ पर आप श्री के असीम उपकार हैं। आपके उपकारों से संघ कभी भी विस्मृत नहीं हो सकता। आप श्री की प्रेरणा से कितने ही पदयात्री चतुर्विद्य संघ निकले हैं। बाड़मेर से जेसलमेर, बड़ौदा से धोलका, भीलवाड़ा से वनेड़ा, जोधपुर से राणकपुर और देहली से हस्तिनापुर / सभी संघ निर्भीक एवं शांति पूर्वक निकले है। जोधपुर से राणकपुर संघ पहंचा तो सम्मान की वेला पर जोधपुर निवासी जसराज जी चोपड़ा जजस्टिज ने आपश्री को चतुर्विध संघ के समक्ष शासन उत्कर्षिनी की उपाधि से विभूषित किया। देहली से हस्तिनापुर जो संघ निकला वह एक अलौकिक संघ था। देहली चातुर्मास के प्रवेश के दिन ही आप श्री के परम भक्त अतूपशहर निवासी अशोक ने कह दिया था कि गुरुवर्या श्री जी मैं आपको हस्तिनापुर की यात्रा चतुर्विध संघ सहित करवाऊंगा। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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