________________ रायपुर, चौहटन, बाड़मेर, भरतपुर, दहाणु, देहली आदि स्थानों पर मण्डलों की स्थापना भी की है। जो आज दिन तर प्रगति के क्षेत्र पर चल रहे है। मण्डलों की स्थापना से पता चलता है कि आपका उद्देश्य महिलाओं को आगे लाने का रहा है। जो महिलाएं परिवार की चार दीवारों में रह कर कुछ नहीं कर पाती थी वह आज मण्डलों के माध्यम से समाज में आगे आ रही है। साथ में भक्ति भावना से अपने मन को निर्मल बना रही है। जिन-शासन के प्रत्येक कार्य में आप श्री की लघु भगिनी प.पू. मुक्ति प्रभा श्री जी म.सा.का पूर्ण सहयोग रहा है। तपस्या से भी आपका जीवन अछूता नहीं रहा है। आप श्री ने तप और साधना को साधन बना कर अपनी आत्मा को निर्मल एवं शुद्ध पवित्र बनाया है। आप श्री जैन साहित्य की अभिवृद्धि में भी संलग्न हैं / साहित्य का सर्जन भी आपकी चिन्तनभरी कलम से हुआ है। जिससे मानव समाज लाभान्वित हो रहा है। काव्य रचना में भी आपकी रुचि रही है। आपश्री के वरदहस्तों से चित्रसेन पद्मावती, सुरप्रिय चरित्र सतीत्व की पराकाष्ठा, विचक्षण कहानियाँ, विविध लेखस्तवन, गीत, सज्झाय, भजन, विद्याक्षाष्टक (हिन्दी, संस्कृत)का कार्य हुआ है। शिष्याओं को पढ़ाने में वात्सल्य की मातुश्री से कम नहीं हैं। आप श्री एक उच्चकोटि की वक्ता, मधुरभाषी और आगमों को जानने समझने और हृदयंगम करने वाली है। संघ का उद्धार हो युवा पीढी में धार्मिक जागृति आये यह सब कार्य आपने अपने कर्तव्य समझकर किये हैं। जैन संघ आप श्री की सेवाओं के लिए ऋणी है। आपके उपकारों की बजह से संघ आपके चरणों में सदैव नतमस्तक रहा है। अगणित है उपकार आपके जैन जगत पर। भूल नहीं पायेगा संघ कभी, जब तक सूरज चांद भूपर / / ***** Jain Education Internation Private & Personal Usevamly.jainelibrary.org