________________ आप श्री की निश्रा में स्व. आचार्य श्रीमज्जिन उदयसागर सूरीश्वर श्री जी म.सा.के वरद हस्त से सम्पन्न हुई। प्रतिष्ठा का वातावरण सभी के दिलों को जीतने वाला बना / अहमदावाद में यह प्रतिष्ठा अभूतपूर्व थी। विरोध करने वाले दांतो तले अंगुली दबा कर देखते ही रह गये। बिखरा हुआ खरतरगच्छ एकत्रित हो गया। दादा साहब का पगला प्रसिद्धि को प्राप्त हो गया। दीक्षा एवं प्रतिष्ठा महोत्सव पर ट्रस्ट के चारों ट्रस्टियों ने तन-मन-धन से इस अभूतपूर्व कार्यक्रम में भाग लिया। यह चारों ट्रस्टीगण चार आधारभूत स्तम्भ रूप प्रसिद्ध हुए। जब से यह प्रतिष्ठा हुई है तब से ही यहां की जाहोजलाली “दिन दूनी रात चौगुनी” बढती ही जा रही है। सोमवार के दिन तो दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है। तत्पश्चात् आप श्री ने जिनदत्तसूरि खरतरगच्छ भवन का कार्य प्रारम्भ करवाया। आपश्री की सतत प्रेरणा एवं ट्रस्टियों की मेहनत के परिणाम स्वरूप अतिशीघ्र ही गगनचुंबी विशाल भवन तैयार हो गया। पूरे अहमदावाद शहर में इतना सुविधाजनक व विशाल जैन निवास स्थान दूसरा नहीं है। अनेकों यात्रीगण आते हैं और पूजा-भक्ति का लाभ उठाते है। दादावाड़ी के पीछे श्री जिनदत्त सूरि विहार धाम बनवा कर समन्वय का परिचय स्थापित किया है। वहां कोई भी गच्छ के साधु-साध्वी जी भगवंत विहार करते हुए स्थिरता कर सकते हैं। आप श्री की प्रेरणा से अब यहां पर सातसौ वर्ष प्राचीन दादावाड़ी का जीर्णोद्धार कार्य प्रारम्भ है। इसका मुख्य प्रवेशद्वार तो बन गया है। आज यह दादावाड़ी अनेक श्रद्धालुओं का श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ हैं। सोमवार के दिन हजारों की संख्या में दादागुरु-भक्त आते हैं और श्रद्धा सुमन चढ़ाकर अपने आपको धन्य मानते है। सोमवार का दिन दादामेला के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है। रात को दो-तीन बजे तक घंटी की आवाज़ सुनायी देती हैं। केवल Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org