________________ कहा कि यह खरतरगच्छ की जमीन है और खरतरगच्छ की ही रहेगी। यहां किसी अन्य गच्छ का उपाश्रय नहीं बनेगा। केवल खरतरगच्छ का ही उपाश्रय बनेगा। उन लोगों का सोचना था कि एक साध्वी होकर क्या कर सकेगी। ___ अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा परन्तु आपश्री का लक्ष्य एक ही रहा। नये ट्रस्ट का गठन किया। जिसमें अध्यक्ष श्री कांतिभाई कोठारी, उपाध्यक्ष श्री शेरमल जी मालू, मंत्री श्री शांतिभाई संचेती, कोषाध्यक्ष श्री वत्सराज जी भंसाली, सहमंत्री नारायण जी महता खीमेल-वाले आदि को लिया गया। सभी ट्रस्टियों ने मिल कर कार्यभार को संभाला। विशेषता यह रही कि कोई सा भी कार्य क्यो न हो, सभी ट्रस्टियों की विचारधारा एक ही रहती। सर्व प्रथम आपश्री ने नवरंगपुरा दादावाड़ी के प्रांगण में "खरतरगच्छ जैन ट्रस्ट" पेढी की स्थापना की। जो आज उत्तरोत्तर सफ़लता की ओर अग्रसर . शारीरिक अस्वस्थता के कारण 1983 का चातुर्मास अहमदावाद श्री संघ ने आपश्री का आमली पोल के उपाश्रय में करवाया / चातुर्मास में नवरंगपुरा दादावाड़ी में श्री मुनिसुव्रत स्वामी देरासर की नींव भरी पड़ी थी उसका कार्य प्रेरणा देकर शीघ्रातिशीघ्र करवाया। मंदिर जी की प्रतिष्ठा के लिए श्री संघ को आचार्य श्री के पास विनंति हेतु भेजा / आचार्य श्री सहर्ष तैयार हो गए। यह स्व, आचार्य श्रीमज्जिन उदय सागर सूरिश्वर जी म.सा.की सरलता एवं उदारता थी। आचार्य श्री के साथ में वर्तमान आचार्य श्रीमज्जिन महोदय सागर सूरिश्वर जी म.सा.एवं प.पू.तपस्वी मुनि पूर्णानंद सागर जी म.सा.पधारे थे। प्रतिष्ठा से कुछ दिन पूर्व वैसाख वदि पंचमी को शकुन्तला की दीक्षा दादा गुरुदेव की छत्रछाया में आचार्य श्री जी के वरद हस्तों सम्पन्न हुई। दीक्षोपरान्त शकुन्तला का नाम साध्वी स्मितप्रज्ञा श्री जी रखा गया। दीक्षापश्चात् तुरन्त ही श्री मुनिसुव्रत स्वामी मंदिर जी की प्रतिष्ठा सन् 1994 में वैसाख सुदि पंचमी को Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org