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________________ दर्शन पश्चात् दादावाड़ी की भूमि को देख कर कुछ स्फूरणा हुई कि इस भूमि को कवर में करना आवश्यक है। इसका उपयोग होना चाहिए ! पूर्व के ट्रस्टीगण उस समय कुछ वृद्ध थे, कुछ में कार्यक्षमता कम थी और कुछ अन्य गच्छ की क्रिया करने लग गये थे। ट्रस्टी के नाम पर तो सारा तंत्र बिगड़ा हुआ था। ट्रस्टियों की ढील के कारण ही इस विशाल भूमि पर अन्य गच्छ का उपाश्रय बनने हेतु चंदा एकत्रित हो चुका था। आपश्री को यहां का माहौल ज्ञात हुआ। वैसे भी आपने अपनी कार्यवाही तो प्रारम्भ कर ही दी थी। आपका यह समय बड़ा ही कटोकटी का था। सारा वातावरण विक्षुब्ध था और उस बीच रहना बड़ा मुश्किल का काम था। चातुर्मास दरम्यान अपनी शिष्याओं को Ph.D.कराने हेतु विशेष जानकारी के लिए आपश्री भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर नवरंगपुरा पहुंची। वहां पण्डित वर्य आगम वेत्ता दलसुख भाई मालवणिया से वार्तालाप हुआ। आपकी रुचि हमेशा ही अध्ययन अध्यापन की रही है / शिष्याओं की अध्ययन में अभिवृद्धि हो यह लक्ष्य हमेशा ही आपका रहा है। शिष्याओं के अध्ययन एवं खरतरगच्छ को एकत्रित करने के लिए आपश्री ने हिम्मत और धैर्य से दो साध्वियों के साथ नवरंगपुरा दादासाहब के पगले पर छप्पर के नीचे बनी छोटी सी कुटिया में रहने की व्यवस्था की। वहां विराजते हुए आपश्री ने खरतरगच्छ जनगणना प्रारम्भ की। चातुर्मास में आपश्री के प्रवचन टाउन हॉल, दिनेश हॉल, अम्बेडकर हॉल, राजस्थान स्कूल आदि में जगह-जगह पर हुए। प्रवचन का सारांश पेपरों मे आया जिससे लोगों को पता चला कि खरतरगच्छ की साध्वी जी का चातुर्माश हो रहा हैं। जिससे भक्त जन दर्शनार्थ आने लगे / धीरे-धीरे सम्पर्क बढ़ता गया / खरतरगच्छ के फार्म भरना चालू हो गया। इसका भी कुछ लोगों ने जो खरतरगच्छ के होते हुए भी अन्य गच्छ की क्रिया करने लग गये थे, उन्होने विरोध किया। आपश्री ने उनकी परवाह किए बिना अपना कार्य आगे बढ़ाया और उन विरोधियों को Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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