________________ गुजरात की राजधानी एवं जैनियों की नगरी के रूप में अहमदावाद सुप्रसिद्ध है। यहां अनेको प्राचीन जैन मन्दिर हैं। कितने ही प्राचीन जैन मन्दिर चोथे दादा गुरुदेव श्री जिनचंद्रसूरि द्वारा प्रतिष्ठित है / यह धर्म धरा अध्यात्म योगी देवचंदजी म.सा., महोपाध्याय समयसुन्दर जी म.सा.आदि अनेको विद्वान आचार्यो का विचरण क्षेत्र रहा है। अतः यह निश्चित है कि यहां खरतरगच्छ का आधिपत्य सर्वोपरि था किन्तु साधु-साध्वी भगवंतो का विचरण कम रहा जिससे खरतरगच्छ के श्रावकों की संख्या कम हो गयी। कभी कभी विचरते हुए साधुसाध्वी जी आते थे, और चातुर्मास भी होते परन्तु संघ की उन्नति व संघ को मजबूत बनाने हेतु कोई ठोस कार्य नहीं हो सका। चातुर्मास हेतु नगरों एवं उपनगरों में भ्रमण करते हुए आपका अहमदावाद नगर में पदार्पण हुआ। अहमदावाद नगर में प्रथम विश्राम हठी सिंह की वाड़ी में हुआ। वही से बैंड बाजों से आपश्री का स्वागत प्रारम्भ हुआ। सत्ताईस वर्ष पश्चात् अपनी जन्मभूमि गुजरात में प्रवेश सभी को आनन्दित करने वाला हुआ। पादरा, बड़ोदा, आदि अहमदावाद के निकटवर्ती क्षेत्रों के श्रावक, श्राविकाएँ आपश्री के आगमन को बधाने के लिए उमड़ पड़े। प्रवेश के समय अपार जनमेदिनी के हृदय में आनंद और उत्साह की उर्मियां उछलती दृष्यमान हो रही थी। स्थान-स्थान पर गहुंलियो, अक्षत से बधाते एवं मंगल गीत के साथ दादासाहब की पोल से आपश्री का प्रवेश हुआ। पोल में आपश्री के आगमन को खूब उत्साह और उमंग से बधाया गया। दादा साहब की पोल का विशाल आंगन स्वागत सभा में परिवर्तित हो गया। सभी ने अपने-अपने भाव-सुमन आपश्री के चरणों कमलों में समर्पित किये / अंत में आपश्री के उद्बोधन ने सभी को कृतकृत्य कर दिया। __ आषाढ सुद एकादशी के रोज जंगम युग प्रधान दादा श्री जिनदत्तसूरि जी की स्वर्गारोहण तिथि पर आपश्री दादासाहब के पगला दर्शनार्थ पधारे / Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org