________________ प्राप्त कर अपना जीवन धर्ममय बनाते है। बच्चों की पढ़ाई में सुविधा जुटाना उनको किसी भी प्रकार की असुविधा न हो-क्योकिं आज का विद्यार्थी आगे चल कर देश का कर्णधार बनता है। उनमें शिक्षा के साथ-साथ धर्म का बीजारोपण भी हो ऐसी आपकी हमेशा की रूचि रही है। जयपुर चातुर्मास पश्चात् विचक्षण विद्याविहार का उद्घाटन करवा कर आप श्री ने गुजरात की ओर विहार कर दिया। विहार करते हुए करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ में मधु की दीक्षा का प्रसंग आ बना। यह आपकी गुरुवर्या श्री जी का साक्षात् चमत्कार था। स्व. आचार्य श्रीमज्जिन उदय सागर सूरीश्वर जी म.सा.ने दीक्षा अवसर पर पधार कर अपनी सरलता का परिचय दिया। कु. मधु का नाम दीक्षा पश्चात् साध्वी मधुस्मिता श्री जी रखा गया / दीक्षा अवसर पर रामसर निवासी (हाल अहमदाबाद)श्री शेरमल जी. मालू आदि भोपाल सागर (करेड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ)तीर्थ पर पधारे और अहमदावाद चातुर्मास के लिए विनंति की और कहा कि आप श्री की सत्ताईस वर्ष दीक्षा पर्याय हो चुकी है। जब से आपश्री ने दीक्षा अंगीकार की है उसके पश्चात् अपनी जन्मभूमि गुजरात में आप नहीं पधारे है। इस बार को आपको गुजरात पधारना ही होगा। अपनी जन्मभूमि को भी तो संभालना चाहिए। जो खरतरगच्छ अर्ध निद्रा में सो रहा है, उसमें भी नवचेतना का संचार करिए / उस समय केकड़ी विजयनगर, भीलवाड़ा, उदयपुर आदि संघ भी चातुर्मास विनंति हेतु पधारे हुए थे। आप श्री ने दीर्घ दृष्टि से सोचा और गुरुवर्या श्री विचक्षण श्री जी म.सा.की भावना एवं अन्तिम आदेश भी यही था कि तुम अब गुजरात की ओर विहार करना। गुरुवर्या श्री जी के वचन एवं उनके जो भी आदेश होते थे वे भविष्य में स्वर्णिम इतिहास बन कर सभी के सामने प्रस्तुत हो जाते थे। जिसका आपको प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है / आप श्री ने अपने गुरु के आदेश को शिरोधार्य करके अहमदावाद श्री संघ की आग्रहभरी विनंति को स्वीकार किया। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org