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________________ कि वहां से कई आत्माएं खरतरगच्छ सम्प्रदाय में संयम ग्रहण कर महावीर पथानुगामिनि बनी है। आज जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अंतर्गत सांचौर का संघ सर्वोपरि दर्जा रखता हैं। संयम लेने के सत्ताईश वर्ष पश्चात् यानि संवत् 1981 में अपनी जन्मभूमि गुजरात में पदार्पण किया। गुजरात में चातुर्मास आप श्री ने अपनी गुरुवर्या श्री जी की आज्ञा से ही किया / जब समतामूर्ति प.पू.श्री विचक्षण श्री जी म.सा.को केन्सर जैसी महाव्याधि घेर रखा था। शारीरिक अवस्था बहुत ही नाजुक बनी हुइ थी फिर भी आत्मचेतना जागृत थी ! ऐसी परिस्थिति में आप श्री को पास बुलाकर निर्देश दिया कि मधु की दीक्षा करा कर गुजरात की ओर विहार कर जाना। आप श्री ने अपनी गुरुवर्या श्री के स्वर्गगमन पश्चात् प्रधानपद विभूषिता प.पू.श्री अविचल श्री जी म.सा.की आज्ञा एवं जयपुर श्री संघ का बहुत आग्रह होने पर चातुर्मास जयपुर ही किया। चातुर्मास दरम्यान भीमराजजी वोहरा की धर्मपत्नी श्री सुशीला वोहरा ने प्रथम वार अट्टाई की / अट्ठाई उपलक्ष में उनकी भावना प्याऊआदि बनवाने की थी। आप श्री ने कहा कि प्याऊ बनवाने के साथ-साथ ऐसा कोई कार्य करो जिससे आपके परिवार का नाम चिरस्मरणीय रहे तथा साथमें युवा वर्ग में धार्मिकता का बीजारोपण हो। इसके लिए आपने उन्हें छात्रावास बनवाने की प्रेरणा दी। सुशीलाजी ने यह बात अपने बड़े जेठजी के सामने रखी। जेठजी (सेठ भंवरलालजी वोहरा)दूसरे दिन आप श्री की निश्रा में आये और बात को मंजूर कर लिया। आप श्री ने जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ जयपुर की जमीन जो टांक फाटक पर थी जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा था उस जगह पर छात्रवास बनवाने की बात संघ के समक्ष रखी। संघ ने बात मंजूर कर ली। भंवरलालजी वोहरा ने उस जमीन को देख कर तुरन्त ही वहां पर तीव्र गति से निर्माण कार्य करवा कर विचक्षण विद्याविहार का निर्माण करवा दिया। जहां पर विद्यार्थी रह कर उच्चतर शिक्षा Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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