________________ भगवान के मंदिर में एक कोने में एक पत्थर पड़ा हुआ है ऐसा अनुभव हुआ। उस पर मकड़ी ने जाले और मिट्टी के थर जमा हुए थे। उसे निकलवाकर साफ करवाकर देखा तो आप श्री की खुशी का पारावार न था। “जिन खोजा तिन पाइयां' संवत् 1681 में प्रतिष्ठित जिन चंद्र सूरि चरण पादुका उपलब्ध हुई। श्रीसंघ को एकत्रित किया। एक उँगली द्वेषवश किसीने खण्डित कर दी थी। उसे ठीक करवाकर प्रक्षाल-पूजा आदि के पश्चात् शुभ मुहूर्त में शान्तिनाथ जी के मंदिरमें दादागुरुदेव एवं “पुण्याहं पुण्याह' के जयघोष के साथ अध्यक्ष श्री छगनलालजी घमडीरामजी बोथरा के कर कमलों द्वारा मंत्रोच्चार के साथ आप श्री ने गुरु-चरण को स्थापित करवाया। प्रतिदिन पूजा-आरती, गुरुइकतीसा, बड़ी पूजा आदि प्रारम्भ करवाई। उत्साह, उमंग एवं आनंद के साथ चातुर्मास सम्पन्न हुआ। __ चातुर्मास की पूर्णाहुति पर आप श्री ने दादावाड़ी एवं उपाश्रय निर्माण के लिए सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। पूरे दिन संघ की बैठक चलती रही। कार्तिक पूर्णिमा का वह दिन सांचौर-खरतरगच्छ संग की कीनं निर्णण का उदय दिन था। खरतरगच्छ संघ ने आप श्री के समक्ष मंदिर, दादावाड़ी, उपाश्रय का कार्य शीघ्र प्रारम्भ करवाने का निर्णय ले लिया और उसी समय उपाश्रय, दादावाड़ी का चंदा प्रारम्भ हो गया। उपाश्रय का शुभ मुहुर्त श्री कालूचंद्रजी श्रीमाल के हाथों करवाया गया / आज विशाल कुशल भवन एवं विराट दादावाड़ी-जो आप देख रहे है वह गुरुवर्या श्री की प्रेरणा एवं पुरुषार्थ का फल है / सांचौर-खरतरगच्छ संघ आप श्री का ऋणी है। आप श्री के असीम उपकारों को वहां का जन-मानस विस्मृत नहीं कर सकता। आपके द्वारा वपन किया गया बीज आज वटवृक्ष बन कर चारों और लहरा रहा है / “सच्चरि मंडण"पावन तीर्थ भूमि को आज जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ का विचरण क्षेत्र बनाया है। प्रतिवर्ष वहां अब खरतरगच्छ के चातुर्मास होते रहे हैं। यहां तक Jain Education InternationBrivate & Personal Usewamy.jainelibrary.org