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________________ तो शनै-शनै विलीन हो चुका था। प.पू. स्वर्गीय प्रवर्तिनी समता मूर्ति श्री विचक्षण श्री जी म.सा.ने आप श्री को इंगित किया कि सांचौर तीर्थस्थल है। खरतरगच्छ का प्राचीन स्तम्भ है। उस क्षेत्र में विचरण करके खरतरगच्छ का पुनःउत्थान करों। गुरुआज्ञा आपके रोम-रोम में समाई हुई थी। पू. गुरुवर्या श्री के निदेशानुसार आप श्री ने पुनःउत्थान का बीड़ा उठाया। प्रथम वार सांचोर में प्रवेश हुआ / उस समय का वातावरण बड़ा ही विचित्र था। साम्प्रदायिक विद्वेष के कारण अनेकानेक विघ्नों प्रतिकूल परिस्थितिर्यों एवं जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा। सोने की कसौटी अग्नि द्वारा होती है। वैसे ही आप की हर तरह से अन्य गच्छ वालों ने परीक्षा की किन्तु अन्त में विध्न-संतोषियों को कहना पड़ा कि आपका तप, त्याग व संयम उत्तम है। साध्वी व्याख्यान का भी घोर विरोध लोगों ने किया फिर भी आपने अपनी ज्ञानधारा से सिंचित कर सभी को शान्त कर दिया। आप श्री ने अपनी धैर्यता, क्षमता, कार्यक्षमता, दीर्घकालीन सूक्ष्म दृष्टि एवं मजबूत मनोबल द्वारा खरतरगच्छ का पुनरोत्थान करने का निर्णय किया। संवत् 2031 में प.पू. प्रवर्तिनी श्री विचक्षण श्री जी म.सा. की आज्ञा से आप श्री ने प्रथम चातुर्मास किया। यह चातुर्मास गच्छ की उन्नति के लिए शानदार एवं ऐतिहासिक रहा। आप श्री के प्रवचन से जैन अजैन सभी प्रभावित हुए। विशेष खरतरगच्छ की बिखरी हुइ कड़ीयों को एक कड़ी में जोड़ने के लिए कार्य कारिणी की स्थापना हेतु बैठक बुलवाई। उसमें सांचौर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष सेठ श्री छगनलालजी घमड़ीरामजी वोथरा को नियुक्त किया गया। दादागुरु देव द्वारा बनाये गये गोत्रवालों को एकत्रित कर खरतरगच्छ के 200 घरों का नूतन संघ निर्माण किया / चातुर्मास अंर्तगत चिन्तन चलता ही रहा कि-दादागुरु-देव का कुछ प्रतीक मिल जाये। जहां चाह होती है वहां राह मिल ही जाती है। खोज जारी रखी, आखिर में शान्तिनाथजी Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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