________________ शैशव बीता, बचपन आया, बचपन को बिदा कर किशोरावस्था में पदार्पण किया। यौवन का उन्माद, षोडशी की उच्छृखलता होना स्वाभाविक था। किन्तु संगीतप्रियता ने जीवन संगीत के स्वरों से नूतन राग का निर्माण किया ।भाग्योदय से संवत् 2011 में पादरा नगर में विश्वप्रेम प्रचारिका, जैन कोकिला, व्याख्यान-भारती, समन्वय साधिका परम पूज्या श्री विचक्षण श्री जी म.सा.का चातुर्मास हेतु आगमन हुआ। पादरा की धर्मपरायण जनता ने गुरुवर्या श्री जी के आगमन को खूब आनंद और उत्साह से बधाया। अभिनंदन के लिए गहुंलियां गाना संगीत रसिको में उल्लास भर ही देता है। अद्भुत वाणी के आकर्षण से मन गुरु-गुण गाने को उत्सुक हुआ। कण्ठ में मधुरता जन्मजात थी। वाणी की मिठास ने साध्वी महोदया के मन को भी जीत लिया। नित्य प्रति आप प्रवचन श्रवण करने आती थी। उस समय उत्तराध्ययन सूत्र एवं पृथ्वीचन्द गुणसागर चरित्र पर धाराप्रवाहिक प्रवचन चलता था / साध्वी जी की साधना अनुपम थी, वाक्चातुर्य प्रखर था, जिससे जनमानस दौड़ता हुआ आता था। प्रवचन का मर्म आत्मिक स्पर्श करने लगा। चरित्र श्रवण से सांसारिक तृष्णा, भोगेषणा का निवृत्ति में परिणमन हो गया। गुरुवर्या श्री जी की पीयूषमयी वाणी के पान से प्रतिदिन सम्पर्क बढता गया। लट भंवरी के न्याय सदृश मधुकान्ता का जीवन गुरु पदरज में निवास हेतु तड़फ़ उठा। साथ में सखी सुमित्रा भी वैराग्य रंग में भीगती गई। चातुर्मास समाप्ति की वेला समीप थी। प्रस्थान से पूर्व संयम रथ पर आरूढ होने की तीव्र उत्कंठा झंकृत होने लगी। विहार पश्चात् गुरुवर्या श्री जी का इधर आना हो या न भी हो। किस प्रकार मैं पथ की पथिका बनूं, मन में चिन्तन चल पड़ा। साध्वी महोदया भी मधुकान्ता की वैराग्य भावना से अज्ञात नहीं रही, वह मधुकान्ता में वैराग्य के बीज स्पष्ट देख रही थी। गुरुवर्या श्री जी ने इस रत्न को तुरन्त ही पहचान लिया कि भविष्य में यह जैन जगत के क्षितिज को प्रकाशित करेगी। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org