________________ (0 मनोहर संयम यात्रा सन्त और वसन्त, भगत और जगत को क्रमशः हरा-भरा बनाने के लिए आते हैं। सन्त के दर्शन से भगत खिलता हैं और वसन्त के आगमन से प्रकृति मुस्कुराती है। सन्त और वसन्त दोनों न अधिक ठण्डे न अधिक गर्म होते हैं। इसीलिए भाग्यशाली उनके आगमन के लिए पलक बिछाकर राह देखते रहते हैं। समता की गंगोत्री, जिनशासन की ज्योति, करुणा की अजस्र धारा, जिनवाणी का अमृतपान कराने वाली मम जीवन निर्मात्री परम पूजनीया गुरुवर्या श्री मनोहर श्री जी म.सा.की जीवन झांकी के विषय मे अपने उद्गार प्रगट करना मेरी शक्ति से बाहर है। मैं मंदज्ञानी सागर सम गम्भीर गुणों का वर्णन करने में सक्षम नहीं, मेरी लेखनी में कहां इतनी शक्ति जो गुरु-गुण का बयान करें। फिर भी गुरु चरणों में नमन कर के साहस बटोर कर कलम हाथ में ले कर लिखने का प्रयास कर रही हूँ। परम पूज्या सरल स्वभावी, ज्ञान की दीपशिखा गुरुवर्या श्री मनोहर श्री जी म.सा.का जन्म सं. 1993 सन् 1937 में श्रावण शुक्ला एकम को जैन धर्म की पावन पुण्य स्थली गुजरात राज्य के पादरा नगर में हुआ। आपश्री के पिता का नाम श्री चिमनलाल शाह एवं माता का नाम श्रीमती चन्दनबहन था। पिताजी बहुत ही भद्रिक एवं धर्मपरायण श्रावक थे। माताजी एक कर्तव्यपरायण श्राविका थी। सात पीढी पश्चात् घर में पुत्री का आगमन सबको आनंदित करने वाला हुआ। पुत्री को पा कर दादाजी की प्रसन्नता सीमातीत थी। पिताजी भी हर्ष-विभोर हो ऊठे। नन्हीं बाला का नाम मधुकान्ता रखा गया / मधुकान्ता अपने दादाजी की बहुत ही लाड़ली थी। ज़रा भी आंखों से ओझल हो जाती तो दादाजी चिंतातुर हो जाते थे। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org