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________________ मधुकान्ता ने परिवार सम्मुख अपनी संयम भावना को रखा। मातापिता ने कहा इतनी अल्पायु में संयम का निर्णय लेना सम्भव नहीं। फिर भी गुजरात की भूमि को धन्य है। जहां से प्रति वर्ष अनेकों विरल विभूतियां जिनशासन में समर्पित होती हैं। पादरा की धर्मधरा भी इन विरल आत्माओं से अक्षुण्ण नहीं थी। कितनी ही भव्यात्माएं जिनशासन में पदारूढ हुई हैं। मधुकान्ता का हृदय भी वैराग्यभावना से निर्मल बनता जा रहा था। वैराग्य की तेजस्वी ज्योति को मां की ममता मंद नहीं कर सकी और न ही पिता का वात्सल्यभाव / निर्णय अटल था। “देहं पातयामि वा कार्यं साधयामि // " आखिर में बड़ी मुसीबत से इस समस्या का समाधान हुआ। येन केन प्रकारेण संवत् 2011 मिगसर सुदि ग्यारस (मौन एकादशी)को पादरा में ही मधुकान्ता एवं सुमित्रा दोनों बालाओं में समतामूर्ति श्री विचक्षणश्रीजी म.सा.के वरद हस्तों से भागवती दीक्षा अंगीकार की। दोनों बालाओं की दीक्षा में मणिलाल पादराकर तथा बाबूभाई पादराकर का बहुत ही सराहनीय सहयोग रहा। कुमारी मधुकान्ता का नाम साध्वी मनोहरश्री जी रखा गया और कुमारी सुमित्रा का नाम सूर्यप्रभाश्री जी रखा गया। पूज्याश्री की निश्रा में श्रमण पर्याय प्रारम्भ हुआ। आपका जीवन संयमी जीवनचर्या से अनभिज्ञ था। परन्तु गुरु के सान्निध्य एवं उनके व्यक्तित्व की झलक ने स्वयमेव ही निर्माण कर दिया। आपश्री की दीक्षा के पांच वर्ष पश्चात् आपकी लघु भगिनि हसुमति भी वैराग्य रस से पल्लवित हुई / जिनकी दीक्षा महान पावन शत्रुजय तीर्थ में हुई / हसुमति का दीक्षा पश्चात् नाम मुक्तिप्रभाश्री जी रखा गया, जिनका जीवन जिनशासन की शोभा बढा रहा है। इनके पश्चात् आपश्री के ज्येष्ठ भ्राताओं की तीन पुत्रियां (आपश्री की सांसारिक तीन भतीजियों)ने मणिधारी दादाश्री जिनचन्द्रसूरिजी की स्वर्गारोहण भूमि देहली में परमपूज्या व्याख्यान वाचस्पति प्र. श्री विचक्षणश्री जी के वरद हस्तों से Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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