SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (( 15. कृत कर्मों का प्रायश्चित्त )) . . ....... .. . . . कर्म अपने आप में पूर्णरूपेण शक्ति सम्पन्न होते हैं। कर्मो में इतनी शक्ति होती है कि यह एक व्यक्ति को उच्च स्तर पर पहुंचा देता है, तो दूसरे को अधोगति में पहुंचा देता है। इन कर्मो की विचित्र माया है। यह क्षण में किसी को राजा तो क्षण में किसी को फ़कीर बना देते है। कर्मराज के आगे किसी की भी पेश नहीं खाती है। यह सभी का पीछा करते हैं, किसी को नहीं छोड़ते चाहे राजा हो या रंक / यहां कर कि इन्होने संत महात्माओं, तीर्थंकरो को और सतियों को भी नहीं छोड़ा, फिर साधारण व्यक्ति की बात तो बहुत दूर रही। कर्मो से छुटकारा पाने के लिए हमारे जैनाचार्यो ने कई मार्ग बतलाये हैं :-धर्म, तप, संयम, साधना, पश्चात्ताप / कर्मो का बन्ध दो प्रकार से होता है एक तो जान कर दूसरा अन्जान में / व्यक्ति जान कर भी कर्मो का बन्ध करता है और अनजान में भी कर्मों का बन्ध कर लेता है। यदि किसी व्यक्ति से अनजान में किसी जीव की हिंसा हो गई है और बाद में उसे पता चले कि यह हिंसा मेरे से हुई है तो वह बार-बार उसका पश्चात्ताप करता है, बार-बार मिच्छामि दुक्कडम् मांगता है कि हे प्रभु मैंने उस जीव की हिंसा जान कर तो नहीं की लेकिन अनजान में मेरे से यह पाप हो गया अब इसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ। इस प्रकार का पश्चात्ताप करने से कर्मो का बन्ध तो होता है लेकिन बहुत ही अल्पमात्रा में / अनजान में किसी पन्चेन्द्रिय जीव की हिंसा हो जाने से पचोले का दण्ड आता है।अगर जान कर कोई व्यक्ति किसी जीव की हिंसा करें तो उसके दण्ड की तो सीमा ही नहीं। लेकिन हिंसा करने के पश्चात् उसका विवेक जागृत हो जाये और वह बार-बार पश्चात्ताप करने लगे और उसी में रमण करता रहे तब उसके कर्मो का बन्ध भी अल्प ही होता है। प्रत्येक प्राणी को जीने का अधिकार है लेकिन मनुष्य अपनी उन्नति एवं शरीर के पोषण के Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy