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________________ 109 है कि खाऊँगा तो आज मैं लड्ड ही खाऊंगा। ___साधु महाराज तो पंच महाव्रत धारी होते है / वह अपना आहार इसलिए किसी को दिखाते नहीं है कि अगर किसी चीज़ को देख कर खाने की इच्छा हो गई या कोई बच्चा चीज़ लेने की जिद्द करने लग गया रोने लगा तो उसका दोष साधु को लगता है / या बनाकर खाने की इच्छा हुई उसने बनाया तो उसका दोष भी साधु को लगता हैं। या फिर पाने में कोई ऐसी चीज़ देख ली जिससे घृणा हो गई क्योकि साधु के पात्र तो कम होते है भिक्षा अलग अलग घर की होती है तो एक ही पात्र में डाल देते है यह देख लोगों को घृणा भी आ जाती है उसका दोष भी साधु को ही लगता है। इसीलिए साधु अपना आहार गृहस्थ को नहीं दिखाये ना ही उसके सामने गोचरी करें। भिखारी की जिद्द को देख दोनों मुनियों को दया आ गई उन्होंने कहां कि तुमको लड़ ही खाने है तो हमारे गुरु-महाराज के पास चलो वह जैसी आज्ञा देगें वैसा हम करेगें। अब तीनों ही उपासरे में आ पहुंचे। उपासरे पहुंच कर, इरियावहियं सूत्र का पाठ उच्चारण कर काउसग्ग पार कर गुरु महाराज को आहार दिखाया तथा बताया कि किस किस के घर की क्या चीज़ हैं। चारित्रधारी साधु महाराजों का यह आचार होता है कि आहार लाकर गुरु-महाराज के पास जाये और उन्हें विनय पूर्वक दिखाए / आहार लेके आने की विधि पूर्ण कर दोनों मुनियों ने उस भिखारी का पूरा दृष्टान्त गुरु-महाराज को सुनाया सुनकर गुरु-महाराज को बहुत दुःख हुआ कि बेचारा तीन दिन का भूखा है मांगने पर रोटी नहीं। लेकिन किया भी क्या जाये। कुछ समय पश्चात् गुरु-महाराज को एक युक्ति सूझि। उन्होने भिखारी से कहां कि अगर तुमको यह लड्डू ही खाना है तो तुमको हमारा जैसा भेष धारण करना होगा। भिखारी ने कहां मंजूर है आप जैसा कहोगे वैसा मैं करने को सहर्ष तैयार हूँ लेकिन खाऊंगा तो आज मैं लड्डु ही / गुरु-महाराज ने उसी समय उसको दीक्षा दे दी और सहज़ में उसने Jain Education Internationarivate & Personal Usevonly.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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