________________ 106 वर्षात अभिनेता तथा अभिनेत्री तो नाटक करते हुए थक भी जाते है जिससे वह विश्राम ले लेते हैं। परन्तु हम तो अनादि काल से इस संसार में नाटक करते आ रहे हैं। अभी तक हैरान नहीं हुए हैं। जब शुभ कर्मो का उदय होता है तो हैरान नहीं होते हैं परन्तु जब अशुभ कर्मो का उदय होता है तो थकान लगती है। मन में यही विचार तथा चिन्तन चलता है कि कब मेरा इन विपत्तियों तथा संकटों से छुटकारा होगा। बन्धुजनों हमें तो दोनो ही समय थकान महसूस करनी है और उसे दूर करने के लिए विश्राम करना है, इसके लिए हमें कर्मों का क्षय करना है। कर्मो का क्षय करने के लिए हमें अपने अन्दर रही हुई ज्ञानामय आत्मा की ओर दृष्टिपात करना पड़ेगा। उसके लिए हमें वीतराग के बताये मार्ग का अनुशरण करना होगा। तभी हम कर्मों से मुक्त हो सकते है। दग्धे बीजे यथाऽत्यन्तं प्रादुर्भवतिनाङ्कुर / कर्मबीजे तथा दग्धे न रोहति भवाङ्कुर / / बीज अत्यन्त जल जाता है तब अंकुर उत्पन्न नहीं होते उसी प्रकार कर्म रूपी बीज सर्वथा जल जाता है फिर संसार रूपी अंकुर उत्पन्न नहीं होते। हमें कर्म रूपी बीजों को जलाना है जिससे हमें संसार रूपी मंच पर तरह-तरह के नाटक, सिनेमा करने नहीं आना पड़े। अनादि काल से नाटक करते आ रहे हैं अब हमें विश्राम लेना है। *** Jain Education Internationerivate & Personal Usev@myjainelibrary.org Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org