________________ 102 एक दिन क्या हुआ शोकेस पर बहू की दृष्टि पड़ी! लड़के को पूछा। बेटा ! यह क्या रख रखा है, मिट्टी के ठिकरे है फेंक दे। लड़के ने तुरन्त ही जबाब दिया। मम्मी यह आपके लिए रखे है। मेरे लिए क्यों ? क्या घर में बर्तन नहीं है। लड़का बोला / बर्तन तो बहुत है, पर मम्मी यह आपका नियम है, आप भी तो दादी मां को इन्हीं मिट्टी के पात्रों में खाना देती हो / आप भी बुढ़े होंगे तो मैं भी इन्हीं बर्तनो में आपको खाना दिया करूंगा। स्मृति के लिए मैंने यह रखे हैं / बहू को बहुत feel हुआ। उसी समय सासू के चरणों में जाकर माफ़ी मांगी, मां मेरे से बहुत बड़ी भूल हुई है, आपको बहुत दुःख दिया है। मां मुझे क्षमा करो! मां ने कहां बहू तुम्हारा दोष नहीं दोष मेरे कर्मो का है। सासू को अच्छे वस्त्र पहनाये तथा अपने कमरे में लाकर अच्छे बर्तनो में भोजन कराया। बेटा आया उसने सारे वातावरण का निरीक्षण किया। जानकारी मिली तो वह भी बहुत शर्मिन्दा हुआ। जो बेटा शादी के पश्चात् मां से बोलता नहीं था, आज मां के चरणों में मस्तक झुकाने लगा। मां का भाग्य खिल उठा। पुण्य उदय में आ गया। कहने का तात्पर्य यह है कि जिसके लिए हम रात-दिन मेहनत करते है, Black Marketing करते है, संसार-भ्रमण बढ़ाते जा रहे है। वही लड़का आगे जाकर हमारा साथ नहीं देता है। यह सब समझते हुए भी हम अनजान बन रहे है। अगर कोई ज्ञानी पुरुष हमें जागृत भी करें कि भाइयों अब अन्तिम स्टेशन पर पहुंचने की तैयारी कर लो, भ्रमण करते बहुत समय हो गया है। हम उस ओर दृष्टिपात ही नहीं करते है। हंसी-मजाक में यह बाते टाल देते हैं / जीवन को एक यात्रा बना रखा है। वर्तमान जन्म में उसकी मंजिल कहां तक घर से कब्र तक। Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org