________________ 101 छोड़ कर दूसरे घर काम करने लग जायेगा / यह उनको भय बना रहता है कि नौकर मिलेगा नहीं तो सारा कार्य अपने हाथों से करना पड़ेगा। एक दंपति थे उनके एक ही पुत्र था। लड़का छोटा था तभी पिताजी की मृत्यु हो गई। घर की सारी जिम्मेदारी मां के ऊपर आ गई। धीरे-धीरे घर की सारी स्थिति साधारण हो गई यहां तक कि पेट पूर्ति की भी मुर्शकल हो गई। मां ने परिश्रम करके अपने पेट पर पाटा बांध कर अपने पुत्र को पढ़ाया लिखाया था। जब वह पढ़ लिख कर डॉकटर बन गया तो मां ने अच्छे घराने की लड़की से उसकी शादी कर दी। मां को आशा थी कि अब मेरे सुख के दिन आ गये। लेकिन सोचा जो होता नहीं है / कर्म के अनुसार ही सुख-दुःख मिलता है। धीरे-धीरे पुत्र की Dispensary अच्छी चलने लग गई / घर की परिस्थिति भी पहले से बहुत अच्छी हो गई। घर में एक पुत्र का आगमन भी हो गया। सब कुछ होते हुए भी मां की स्थिति बहुत ही खराब थी। फटे पुराने कपड़े उसके शरीर पर रहते तथा खाने के लिए मिट्टी के बर्तन में रूखा सूखा भोजन दिया जाता था। पिताजी तो पहले ही संसार से बिदा हो गये थे। घर पर कोई मेहमान आता पूछता यह कौन है, तो उत्तर यह मिलता कि घर की नौकरानी है। एक दिन क्या हुआ मां से मिट्टी का पात्र (वर्तन)नीचे गिर गया, उसके टुकड़े-टुकड़े हो गये, यह देख मां को बहुत दुख हुआ, वह उदास बैठ गई / कुछ समय पश्चात् उसका पोता वहां आया पूछने लगा ! दादी मां! आप इतने उदास क्यों हो ? दादी मा ने सारी हकीकत उसको सुना दी / सुनकर उस छोटे बालक को बहुत दुख हुआ। हृदय में करूणा उत्पन्न हुई। उसने मिट्टी के बर्तन के सारे टुकड़े उठा कर अपने शोकेस में रख लिए और दादीमां को नया पात्र लाकर दे दिया। बालक बहुत समझदार और बुद्धिशाली था। अब रोज वह दादी मां के पास आता रहता, प्रेम पूर्ण व्यवहार रखता तथा अपने खाने में से भी कुछ हिस्सा दादी मां को लाकर खिला देता! Jain Education Internationerivate & Personal Usev@wily.jainelibrary.org