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________________ ((१२."जीवन एक यात्रा है"Life is Journey)) जीवन एक यात्रा है, प्रवास है, सफ़र है, मुसाफ़िरी है, जो कभी अकेले में, कभी भीड़ में कभी नीड़में इसका क्रम चलता जा रहा है। जीवन का यह क्रम अनादि काल से अनवरत रीति से चला आ रहा है। जिस प्रकार रात्रि के पश्चात् दिवस, दिवस के पश्चात् रात्रि / जनवरी के पश्चात् फरवरी, फरवरी के पश्चात् मार्च / इसी प्रकार बारह महीनों का क्रम चलता रहा है। हमारे जीवन का क्रम भी इसी प्रकार चला आ रहा है। हमें किस मंजिल पर पहुंचना है यह उद्देश्य लिए बिना ही हम चले जा रहे हैं। इसलिए हमारी मंजिल . अभी तक आई नहीं है। हमें मंजिल प्राप्त करनी है तो पहले हमें कहां पहुंचना है उसका निर्णय करना पड़ेगा, तभी उस तक पहुंच सकते हैं / लक्ष्य नहीं बनायेगें तब तक इस संसार में भ्रमण करते ही रहेगें। जिस प्रकार कोई व्यक्ति गाड़ी में बैठ जाता है, और उसे मालुम ही नहीं है कि मुझे कौन से स्टेशन पर उतरना है। तो वह गाड़ी में घूमता ही रहेगा जब तक उसे यह मालुम नहीं होगा कि मुझें कौन से स्टेशन पर उतरना है। ठीक इसी प्रकार हमारी आत्मा भी अनादि काल से इस संसार में भ्रमण करती आ रही हैं क्योंकि आज दिन तक पता ही नहीं कि मेरा अन्तिम Station कौन सा है। जब तक मालुम नहीं होगा तब तक हमकों घूमना ही पड़ेगा। लेकिन इस घूमने में विशेषता इतनी है कि आज दिन तक हमें घूमने में थकावट महसूस नहीं हुई, इसीलिए घूमते जा रहे हैं। आज हम धार्मिक क्षेत्र की ओर दृष्टिपात करें कि कोई व्यक्ति पूजा करता है, सामयिक करता है, माला फेरता है तो उसे बहुत जल्दी थकावट आ जाती है। परेशान हो जाता है, सिर दर्द होने लगता है, कमर दुखने लगती है, भूख लगने लगती है, शरीर बैचेन हो जाता है। ठीक इसके विपरित जड़ पदार्थो की ओर दृष्टिपात करे तो हमें पता Jain Education Internation Private & Personal UsevOply.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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