________________ वाला ही मिश्री का स्वाद जान सकता है, दूसरा नहीं। दूसरा तो सिर्फ कह ही सकता है कि मिश्री मीठी, सफ़ेद है। लेकिन वास्तविक स्वरूप को नहीं बतला सकता। इसी प्रकार मैंने आत्मा के स्वाद को चख लिया है, दूसरा स्वाद लेने की मुझे आवश्यकता नहीं। मिष्ठान खाकर कौन कड़वा, तीखा खाने की इच्छा रखेगा। वह व्यक्ति शर्मिन्दा होकर वहां से रवाना हो गया। कहने का तात्पर्य यह है कि परमात्म स्वरूप को प्राप्तकर लेने पर किसी भी चीज़ की आवश्यकता शेष नहीं रहती है। परमात्म स्वरूप को प्राप्त करने के लिए विभाव से स्वभाव में आना होगा। स्वभाव में आने के लिए देव, गुरु, धर्म का आश्रय लेना होगा / देव, गुरु, धर्म का आलम्बन लेकर हम स्वभाव को प्राप्त करके परमात्म स्वरूप को प्राप्त कर सकते हैं। ***** Jain Education Internationerivate & Personal Usenany jainelibrary.org Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org