SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन में ही वैरागी भरत जी, मन में ही वैरागी। सहस बत्रीस मुकुट बंध राजा, सेवा करे वड़मागी॥ चौसठ सहस्र अन्तेउरी जाके, तोहि न हुआ अनुरागी। भरत जी मन में ही वैरागी .... // भरत महाराज ने कहां कि आप यह जानना चाहते है तो यह तेल का भरा हुआ कटोरा लो। मैं कहता हूँ कि तुम मेरे पूरे महल के चारों ओर परिक्रमा कर आओं। लेकिन परिक्रमा करते समय यह ध्यान में रखना होगा कि कौन से महल में रानी कैसी ड्रेस पहन कर बैठी है, क्या-क्या नाटक चल रहे है, कौन क्या कर रहा है, महल की कारीगरी कैसी है। इस सब बातों के साथ यह बात भी ध्यान रखने की है कि कटोरे में से एक बूंद भी तेल ढुलना नहीं चाहिए। अगर एक बूंद भी तेल की नीचे गिरा तो नंगी तलवार लिए सिपाही आजू-बाजू में चलेंगे तेल की बूंद गिरते ही तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर देगें! व्यक्ति यह सुन असमंजस में पड़ गया। आया था शंका का समाधान करने मुर्शकल में पड़ गया। महल के चारों तरफ़ चक्कर तो लगाया लेकिन उसका ध्यान सिर्फ़ कटोरे पर ही केन्द्रित रहा। उसे भय था कि अगर एक बूंद भी तेल गिरा तो सिर से धड़ अलग, मृत्यु निचित ! चक्कर लगाकर पुनः भरत महाराजा के पास आया। भरत महाराज ने पूछा चक्कर लगा लिया। महल में क्या-क्या कारीगरी देखी, कौन सी रानी कहां बैठी थी, क्या ड्रेस पहनी थी, क्या-क्या नाटक चल रहे थे / व्यक्ति ने उत्तर दिया महाराज ! माफ़ करना ? मेरे सामने मृत्यु का भय था इसलिए मेरी दृष्टि कटोरे पर ही रही / महल का दृष्टिपात नहीं कर सका। यह सुन कर भरत महाराज कहने लगे ठीक है जिस प्रकार तुम्हारे सामने मृत्यु घूम रही थी इसलिए दृष्टि को तेल के कटोरे पर केन्द्रित रखा कहीं दूसरी तरफ़ दृष्टिपात नहीं किया ठीक इसी प्रकार इतना ऐश्वर्य होने पर भी मैं अपनी आत्मा के निरीक्षण में लगा हुआ हूँ किसी भी चीज़ में मेरी आसक्ति नहीं है। मिश्री खाने Jain Education InternationBrivate & Personal Usevaply.jainelibrary.org
SR No.002767
Book TitleManohar Dipshikha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherVichakshan Prakashan Trust
Publication Year1997
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy