________________ 96 दोनों चुप हो गये / ऐसी दशा कहीं कहीं पर आज कल साधु-साध्वी की हैं। विहार करते समय मुक़ाम करना है तो सबसे पहले सामने यही प्रश्न उपस्थित होता है कि म.सा.आप एक तिथि के हो या दो तिथि के। जहां ऐसी परिस्थिति आती हैं तो हम तो यही उत्तर देते है कि हम तो महावीर के है, जैन साधु है। आपको गच्छ पन्थ से क्या मतलब ! और भी ज्यादा पूछते है तो यही कहते है कि हम दादा गुरुदेव के भक्त है / दोनों के बीच में बहुत बड़ी Problem उपस्थित हो जाती है। इस बीच में हम न एक तिथि के और न दो तिथि के तो स्थान मिल जाता है। अगर एक या दो तिथि के कह दिया तो रूकने को भी स्थान नहीं। इतना लम्बा विहार कमर बंधी हुई फिर रहने को जगह नहीं, बहुत मुशिकल खड़ी हो जाती है। ही और भी की लड़ाई है / ही होगा तो झगड़ा प्रारम्भ / भी होगा तो झगड़ा समाप्त / एकान्तवाद और अनेकान्तवाद दो है। जहां एकान्तवाद है वहां झगड़ा है। जहां स्यादवाद है वहां झगड़ा नहीं होता है। ‘भी लाना बहुत बड़ी बात है। भी लाने की क्रिया को सीखना पड़ेगा। जो हमें महापुरुषों से सीखनी होगी। जैसा कि देवचन्द्र जी महाराज ने कहां है कि हमारी आत्मिक शक्ति परमात्मा के समान है उसे प्रकट करनी है। हम स्वभाव से विभाव में घूम रहे है। हे प्रभु मुझें विभाव से स्वभाव में आना है। मैं भोगानंदी, कामानन्दी, इन्द्रियनन्दी बना हुआ हूँ। इसलिए तेरे स्वरूप को पा नहीं रहा हूँ। आशक्ति की गुलामी से दूर हटूंगा तभी तेरे स्वरूप को प्राप्त कर सकूगा। चक्रवर्ती भरत महाराजा के पास एक व्यक्ति आया पूछा ? महाराजा ? आपको लोग अनासक्त कहते हैं / यह कैसे हो सकता है ? मैं तो आपको आसक्त देखता हूँ। आपके 64,000 रानियां है, 32,000 मुकुटबंध राजा आपकी सेवा में खड़े रहते है। फिर आप अनासक्त कैसे हो सकते हो। दुनियां कहती हैं कि Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org