________________ 95 वे माता, पिता शत्रु हैं जिन्होने अपने बालक को नहीं पढ़ाया, जिस तरह हंसो के बीच बगुला शोभा नहीं देता उसी प्रकार विद्वानों के मध्य मूर्ख बालक / बालक की प्रथम पाठशाला उसके माता-पिता ही हैं। सर्व प्रथम शिक्षा माता-पिता द्वारा ही मिलनी चाहिए। माता-पिता जैसी शिक्षा देगें उसी के अनुसार बालक के भविष्य का निर्माण होता है। शैशवावस्था ऐसी होती है जिसमें जैसे बीज डालेंगे वैसा ही वृक्ष का निर्माण होगा। बच्चों में शुरू से ही संस्कार डालना चाहिए कि रात्रि भोजन नहीं करना चाहिए, सुबह मुंह में पानी डालने से पूर्व नवकार मंत्र गिनना चाहिए, मंदिर दर्शन करने चाहिए, बड़ो की आज्ञा का पालन करना चाहिए आदि! माकण्डेय ऋषि ने बताया हैं कि रात्रि भोजन करने पर भोजन मांस तुल्य और पानी रुधिर तुल्य हो जाता हैं। अस्तं गते दिवानाथे, आपो रुधिरमुच्यते। अन्नं मासं समं प्रोक्तं, मार्कण्डेण महर्षिणा॥ सूर्य अस्त होने पर जीवों की वर्षा होती है जो अति सूक्ष्म होते हैं, वह हमें दिखाई नहीं देते। हम मच्छरों से बचने के लिए सौ बाई का बल्ब लगाते हैं, ट्यूबलाईट लगाते है कि मच्छर हमारे भोजन में नहीं पड़े हमें दिखाई दे जाये / हम मच्छरों से बच सकते हैं परन्तु सूक्ष्म जीवों से नहीं। जीवों से बचना हैं, उनकी रक्षा करनी है तो रात्रि भोजन का त्याग अवश्य करें। अब हम पुनः अपनी बात पर आते हैं। दो पागल जा रहे थे। एक कहता है यह चन्द्र है दूसरा कहता है यह सूर्य है। दोनों में झगड़ा हो गया। इतने में एक शेठजी आये। उसने पूछा ! शेठजी यह चन्द्र है या सूर्य / शेठ जी ने सोचा यह दोनों ही मूर्ख हैं। जिसका पक्ष लूंगा तो दूसरे की लाठी मेरे सिर पर पड़ेगी। शेठ जी समझदार थे कहां भाई मैं तो नया हूँ, दूर देश से आया हूँ। मैं जानता नहीं यह सूर्य है या चन्द्र / मैं दूसरी दुनिया से आया हूँ। यह सुनकर Jain Education Internation@rivate & Personal Usewowy.jainelibrary.org